बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओ...!

अदीम हाशमी का नाम शेर-ओ-शायरी की दुनिया में बड़े अदब से लिया जाता है। अदीम हाशमी ने अपने शायरी में मोहब्बत की कसक, उलझन और जुदाई को बड़ी खूबसूरती से लफ्जों से पिरोया है। आज हम आपके लिए कविताकोश के साभार से लेकर आए हैं अदीम हाशमी की कलम से निकली कुछ रचनाएँ.....।
 
 
बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओ,
हर इक जानिब तेरा ग़म है कभी मिलने चले आओ।
 
हमारा दिल किसी गहरी जुदाई के भँवर में है,
हमारी आँख भी नम है कभी मिलने चले आओ।
 
मेरे हम-राह अगरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है,
मगर जैसे कोई कम है कभी मिलने चले आओ।
 
तुम्हें तो इल्म है मेरे दिल-ए-वहशी के ज़ख़्मों को,
तुम्हारा वस्ल मरहम है कभी मिलने चले आओ।
 
अँधेरी रात की गहरी ख़मोशी और तनहा दिल,
दिए की लौ भी मद्धम है कभी मिलने चले आओ।
 
तुम्हारे रूठ के जाने से हम को ऐसा लगता है,
मुक़द्दर हम से बरहम है कभी मिलने चले आओ।
 
हवाओं और फूलों की नई ख़ुश-बू बताती है,
तेरे आने का मौसम है कभी मिलने चले आओ।।
 
 
बस कोई ऐसी कमी सारे सफ़र में रह गई,
जैसे कोई चीज़ चलते वक़्त घर में रह गई।
 
कौन ये चलता है मेरे साथ बे-जिस्म-ओ-सदा,
चाप ये किस की मेरी हर रह-गुज़र में रह गई।
 
गूँजते रहते हैं तनहाई में भी दीवार ओ दर,
क्या सदा उस ने मुझे दी थी के घर में रह गई।
 
और तो मौसम गुज़र कर जा चुका वादी के पार,
बस ज़रा सी बर्फ़ हर सूखे शजर में रह गई।
 
रात दरिया में फिर इक शोला सा चकराता रहा,
फिर कोई जलती हुई कश्ती भँवर में रह गई।
 
रात भर होता रहा है किन ख़ज़ानों का नुज़ूल,
मोतियों की सी झलक हर बर्ग-ए-तर में रह गई।
 
लौट कर आए न क्यूँ जाते हुए लम्हे 'अदीम',
क्या कमी मेरी सदा-ए-बे-असर में रह गई।।

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