अर्जुन की प्रतिज्ञा सुनकर, कुरुक्षेत्र छोड़कर भागना चाहता था जयद्रथ

लगभग 5000 वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र में जब धर्म एवं अधर्म के मध्य महाभारत का युद्ध कौरव-पांडवों के मध्य चल रहा था यह कथा उस समय की है. जब इस युद्ध में अर्जुन के निहत्थे पुत्र अभिमन्यु को जयद्रथ ने छलपूर्वक मारा था, उस समय अर्जुन ने जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा की थी. महाभारत का भयंकर युद्ध चल रहा था. अर्जुन युद्ध करते-करते रणक्षेत्र से काफी दूर निकल गए थे. इस अवसर का लाभ उठाते हुए अर्जुन की अनुपस्थिति में पांडवों को पराजित करने के लिए गुरु द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की. अर्जुन पुत्र अभिमन्यु उस चक्रव्यूह को भेदने के लिए उसमें प्रवेश कर गया. अभिमन्यु ने कुशलतापूर्वक उस चक्रव्यूह के छ: चरण भेद लिए जब वह सातवें चरण में प्रवेश कर गया तो उसे दुर्योधन, जयद्रथ आदि सात महारथियों ने घेर लिया तथा उस निहत्थे अभिमन्यु पर टूट पड़े.

जयद्रथ ने निहत्थे अभिमन्यु पर पीछे से जोरदार प्रहार किया. वह वार इतना तीव्र एवं घातक था कि अभिमन्यु उसे सहन न कर सका तथा वीर गति को प्राप्त हो गया. अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार सुनकर अर्जुन क्रोध से पागल हो उठे. उन्होंने तभी प्रतिज्ञा की कि यदि अगले दिन सूर्यास्त से पूर्व उन्होंने अपने पुत्र की हत्या करने वाले कौरवों के जयद्रथ का वध नहीं किया तो वह आत्मदाह कर लेंग.

संजय कहते हैं- महाराज! अपने पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु के कारण अर्जुन क्रोधवश ये प्रतिज्ञा कर लिया हैं कि या तो वह सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध करेंगे यदि ऐसा नहीं हुआ तो अग्नि समाधि ले लेंगे. जयद्रथ अर्जुन की प्रतिज्ञा के बारे में सुनकर अत्यंत भयभीत हो जाता है, जिसका वर्णन महाभारत द्रोण पर्व में प्रतिज्ञा पर्व के अंतर्गत 74वें अध्याय में दिया गया है, जो इस प्रकार है

अर्जुन की प्रतिज्ञा से जयद्रथ का भय

संजय कहते हैं- राजन! सिंधुराज जयद्रथ ने जब विजयाभिलाषी पाण्‍डवों का वह महान शब्‍द सुना और गुप्‍तचरों ने आकर जब अर्जुन की प्रतिज्ञा का समाचार निवेदन किया, तब वह सहसा उठकर खड़ा हो गया, उसका हृदय शोक से व्‍याकुल हो गया. वह दु:ख से व्‍याप्‍त हो शोक के विशाल एवं अगाध महासागर में डूबता हुआ-सा बहुत सोच-विचारकर राजाओं की सभा में गया और उन नरदेवों के समीप रोने बिलखने लगा. जयद्रथ अभिमन्‍यु के पिता से बहुत डर गया था, इसलिये लज्जित होकर बोला– ‘राजाओं! कामी इन्‍द्र ने पाण्‍डु की पत्नी के गर्भ से जिसको जन्‍म दिया है, वह दुर्बुद्धि अर्जुन केवल मुझको ही यमलोक भेजना चाहता है, यह बात सुनने में आयी है. अत: आप लोगों का कल्‍याण हो.
अब मैं अपने प्राण बचाने की इच्‍छा से अपनी राजधानी को चला जाऊँगा.अथवा क्षत्रियशिरोमणि वीरो! आप लोग अस्‍त्र-शस्‍त्रों के ज्ञान में अर्जुन के समान ही शक्तिशाली हैं.
उधर अर्जुन ने मेरे प्राण लेने की प्रतिज्ञा की है. इस अवस्‍था में आप मेरी रक्षा करें और मुझे अभयदान दें.

द्रोणाचार्य, दुर्योधन, कृपाचार्य, कर्ण, मद्रराज शल्‍य, बाह्लक तथा दु:शासन आदि वीर मुझे यमराज के संकट से भी बचाने में समर्थ हैं. प्रिय नरेशगण! फिर अब अकेला अर्जुन ही मुझे मारने की इच्‍छा रखता है तो उसके हाथ से आप समस्‍त भूपतिगण मेरी रक्षा क्‍यों नहीं कर सकते हैं. राजाओं! पाण्‍डवों का हर्षनाद सुनकर मुझे महान भय हो रहा है. मरणासन्न मनुष्‍य की भाँति मेरे सारे अंग शिथिल होते जा रहे हैं. निश्चय ही गाण्‍डीवधारी अर्जुन ने मेरे वध की प्रतिज्ञा कर ली है, तभी शोक के समय भी पाण्‍डव योद्धा बड़े हर्ष के साथ गर्जना करते हैं. उस प्रतिज्ञा को देवता, गन्धर्व, असुर, नाग तथा राक्षस भी पलट नहीं सकते हैं. फिर ये नरेश उसे भंग करने में कैसे समर्थ हो सकते हैं? अत: नरश्रेष्‍ठ वीरो! आपका कल्‍याण हो. आप लोग मुझे जाने की आज्ञा दें. मैं अदृश्‍य हो जाऊँगा. पाण्‍डव मुझे नहीं देख सकेंगे.'

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