पाखंडवाद पर कबीर का वार, पढ़िए शानदार तर्कशील दोहे

भगवान श्री राम के बहुत से भक्त हुए लेकिन कबीर जैसा अनिखा भक्त नहीं हुआ, अक्सर लोग कबीर को धर्म विरोधी समझते हैं लेकिन कबिर धर्म के विरोध में नहीं थे वो केवल इसमें फैले पाखंड को दूर करना चाहते थे. कबिर  अंतरमुखी भक्त थे. वे भगवान को अपने अंदर खोजा था. इसे लिए कबीर अपने दोहे में कई बात ऐसे बोलते हैं जिससे लगता हैं की धर्म के विरोधी हैं लेकिन उन्होंने पाखंड को उखाड़ के फेकने की कोशिस की गई. आइये कबीर के दोहे पर नज़र डालते हैं.


पाथर पूजे हरी मिले,
तो मै पूजू पहाड़ !
घर की चक्की कोई न पूजे,
जाको पीस खाए संसार 

2
”माटी का एक नाग बनाके,
पुजे लोग लुगाया !
जिंदा नाग जब घर मे निकले,
ले लाठी धमकाया !!”

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।”

4
काहे को कीजै पांडे छूत विचार।
छूत ही ते उपजा सब संसार ।।
हमरे कैसे लोहू तुम्हारे कैसे दूध।
तुम कैसे बाह्मन पांडे, हम कैसे सूद

5
एक बूँद ,एकै मल मुतर,
एक चाम ,एक गुदा ।
एक जोती से सब उतपना,
कौन बामन कौन शूद ”

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