दिल वालों की बस्ती में दिल के मारे बैठे हैं- कवि कमलेश द्विवेदी

हँसमुख स्वभाव के कवि कमलेश द्विवेदी हिंदी साहित्य में अपनी हास्यप्रद कविताओं के लिए जाने जाते हैं लेकिन हास्य से इतर हो कर भी उन्होंने कुछ ऐसी रचनाएँ भी लिही हैं जिनमें मन का और भी जज़्बात बयाँ होते हैं... आज सी न्यूज़ भारत के साहित्य में पेश है कवि कमलेश द्विवेदी की कुछ रचनाएँ...।
 
दिल वालों की बस्ती में दिल के मारे बैठे हैं,
हमने सबका दिल जीता अपना हारे बैठे हैं।
 
होगी रात अमावस की लेकिन कितनी रौशन है,
तेरी यादों के जुगनू साथ हमारे बैठे हैं।
 
मेरी आँखों के घर के भीतर आकर देखो तो,
अब तक जाने कितने ही ख्वाब कुँवारे बैठे हैं।
 
जिससे कल तुम गुज़रे थे उस रस्ते पर लौटोगे,
उस पर आँख बिछाये हम बाँह पसारे बैठे हैं।
 
कहने को सब अपने हैं लेकिन अपना कौन यहाँ,
लेकर कितनी उम्मीदें लेकर तेरे द्वारे बैठे हैं।।
 
जब तक दिल में पीर रहेगी,
ग़ज़लों की जागीर रहेगी।
 
मीठी नहीं, नमकीन बना दो,
तो फिर क्या वो खीर रहेगी ?
 
राँझे तब तक पैदा होंगे,
जब तक कोई हीर रहेगी।
 
बँटवारे में सब कुछ ले लो,
मेरे सँग तकदीर रहेगी।
 
दिल में इमारत बन जाये तो,
होकर वो तामीर रहेगी।
 
महँगी मढ़ने से क्या हरदम,
ज्यों की त्यों तस्वीर रहेगी ?
 
हम न रहेंगे तो भी क्या है,
अपनी एक नजीर रहेगी।
 
कल भी अदब की बातें होंगी,
कल भी गजले-मीर रहेगी।।

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