इक उम्र हुई, दिल की लगी कम नही होती...!

1958 में जन्में अकील नोमानी को शायरी का शौक विरासत में मिला। उस्ताद ज़लील नोमानी से उन्होंने गज़ल कहने का हुनर सीखा। 1978 में सिचाई विभाग में नौकरी करने के बाद से वे लगातार गज़ल कहने से जुड़ गये और यह सिलसिला अब तक बदस्तूर जारी है। पत्रिकाओं आदि में भी तभी से छपना शुरू हो गये। आज सी न्यूज़ भारत के साहित्य में अकील नोमानी की कुछ ग़ज़लों को हम आपके लिए लेकर आये हैं जिन्हें पढ़ कर आपके एहसासों को भी कुछ सुकून मिलेगा...।
 
एहसास में शिद्दत है वही, कम नहीं होती,
इक उम्र हुई, दिल की लगी कम नही होती।
 
लगता है कहीं प्यार में थोड़ी-सी कमी थी,
और प्यार में थोड़ी-सी कमी कम नहीं होती।
 
अक्सर ये मेरा ज़ह्न भी थक जाता है लेकिन,
रफ़्तार ख़यालों की कभी कम नहीं होती।
 
था ज़ह्र को होंठों से लगाना ही मुनासिब,
वरना ये मेरी तश्नालबी कम नहीं होती।
 
मैं भी तेरे इक़रार पे फूला न समाता,
तुझको भी मुझे पाके खुशी कम नहीं होती।
 
फ़ितरत में तो दोनों की बहुत फ़र्क़ है लेकिन,
ताक़त में समंदर से नदी कम नहीं होती।।
 
हर शाम सँवरने का मज़ा अपनी जगह है,
हर रात बिखरने का मज़ा अपनी जगह है।
 
खिलते हुए फूलों की मुहब्बत के सफ़र में,
काँटों से गुज़रने का मज़ा अपनी जगह है।
 
अल्लाह बहुत रहमों-करम वाला है लेकिन,
लेकिन अल्लाह से ड़रने का मजा अपनी जगह है।।

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