हर वक़्त हमसे पूछ न ग़म रोज़गार के... "जां निसार अख़्तर"

जां निसार अख़्तर प्रगतिशील विचारधारा संघ से जुड़े एक शायर और गीतकार रहे हैं, उन्हें लेखन विरासत में मिला है। वह अपने दौर के प्रसिद्ध शायर मुज़्तर ख़ैराबादी की संतान हैं। जां निसार की रूमानी शायरी में धीरे- धीरे यथार्थ का मिश्रण हुआ और वह प्रगतिवाद की ओर बढ़ गए। उन्होंने ग़ज़लों, नज़्मों समेत प्रेम पर्वत, नूरी और रज़िया सुल्तान जैसी फ़िल्मों के गाने भी लिखे हैं।

पूछ न मुझसे दिल के फ़साने,
इश्क़ की बातें इश्क़ ही जाने।

वो दिन जब हम उन से मिले थे,
दिल के नाज़ुक फूल खिले,
मस्ती आँखें चूम रही थी,
सारी दुनिया झूम रही,
दो दिल थे वो भी दीवाने।

वो दिन जब हम दूर हुये थे
दिल के शीशे चूर हुये थे,
आई ख़िज़ाँ रंगीन चमन में।
आग लगी जब दिल के बन में,
आया न कोई आग बुझाने।।

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अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए,
अपनी नज़र में आप को रुसवा किया न जाए।

हम हैं तेरा ख़याल है तेरा जमाल है,
इक पल भी अपने-आप को तन्हा किया न जाए।

उठने को उठ तो जाएँ तेरी अंजुमन से हम,
पर तेरी अंजुमन को भी सूना किया न जाए।

उनकी रविश जुदा है हमारी रविश जुदा,
हमसे तो हर बात पे झगड़ा किया न जाए।

हर-चंद ए'तिबार में धोखे भी है मगर,
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए।

लहजा बना के बात करें उनके सामने,
हमसे तो इस तरह का तमाशा किया न जाए।

इनाम हो ख़िताब हो वैसे मिले कहाँ,
जब तक सिफारिशों को इकट्ठा किया न जाए।

हर वक़्त हमसे पूछ न ग़म रोज़गार के,
हम से हर घूँट को कड़वा किया न जाए।।

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