“चांद औरों पर मरेगा क्या करेगी चांदनी”- हुल्लड़ मुरादाबादी

29 मई 1942 को गुजरावाला, पाकिस्तान में जन्मे हुल्लड़ मुरादाबादीबंटवारे के दौरान परिवार के साथ उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में आ गए थे। इनका वास्तविक नाम सुशील कुमारचड्ढा था।इतनी ऊंची मत छोड़ो, क्या करेगी चांदनी, यह अंदर की बात है, तथाकथित भगवानों के नाम जैसी हास्य कविताओं से भरपूर पुस्तकें लिखने वाले हुल्लड़ मुरादाबादी को कलाश्री, अट्टहास सम्मान, हास्य रत्न सम्मान, काका हाथरसी पुरस्कार जैसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हुल्लड़ मुरादाबादी ने शुरुआत में तो वीर रस की कविताएं लिखी लेकिन कुछ समय बाद ही हास्य रचनाओं की ओर उनका रुझान हो गया और हुल्लड़ की हास्य रचनाओं से महफिले ठहाको से भरने लगी। 1962 में उन्होंने ‘सब्र’ उप नाम से हिंदी काव्य मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। बाद में वह हुल्लड़ मुरादाबादी के नाम से देश दुनिया में पहचाने गए।नाम-ओ-शोहरत हासिल करने के बाद एक रोज़12 जुलाई 2014 के दिनहुल्लड़ मुरादाबादी ने ये दुनिया छोड़ दी।आज सी न्यूज़ भारत के साहित्य में पेश-ए-ख़िदमत है हुल्लड़ मुरादाबादी की कलम से निकले कुछ अल्फाज़...


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चांद औरों पर मरेगा क्या करेगी चांदनी,
प्यार में पंगा करेगा क्या करेगी चांदनी।

चांद से हैं खूबसूरत भूख में दो रोटियाँ,
कोई बच्चा जब मरेगा क्या करेगी चांदनी।

डिग्रियाँ हैं बैग में पर जेब में पैसे नहीं,
नौजवाँ फ़ाँके करेगा क्या करेगी चांदनी।

जो बचा था खून वो तो सब सियासत पी गई,
खुदकुशी खटमल करेगा क्या करेगी चांदनी।

दे रहे चालीस चैनल नंगई आकाश में,
चाँद इसमें क्या करेगा क्या करेगी चांदनी।

साँड है पंचायती ये मत कहो नेता इसे,
देश को पूरा चरेगा क्या करेगी चांदनी।

एक बुलबुल कर रही है आशिक़ी सय्याद से,
शर्म से माली मरेगा क्या करेगी चांदनी।

लाख तुम फ़सलें उगा लो एकता की देश में,
इसको जब नेता चरेगा क्या करेगी चांदनी।

ईश्वर ने सब दिया पर आज का ये आदमी,
शुक्रिया तक ना करेगा क्या करेगी चांदनी।

गौर से देखा तो पाया प्रेमिका के मूँछ थी,
अब ये "हुल्लड़" क्या करेगा, क्या करेगी चांदनी।।

 

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