“ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?”- अटल बिहारी वाजपेई
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देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय पंडित अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व हमेशा औरों से जुदा रहा है। उनके एक हाथ में राजनीति की कमान रही तो दूसरे हाथ में खुद्दारी से कवितायें लिखने वाली लेखनी। अटल बिहारी वाजपेयी ने जितनी बेबाकी से राजनीति में सम्बोधन किया तो उससे भी अधिक दृढ़ता के साथ कवितायें लिखीं। आज सी न्यूज़ भारत के साहित्य में श्रद्धेय पंडित अटल बिहारी वाजपेयी की कलम से निकली हुई कुछ कविताओं को हम आपके लिए पेश कर रहे हैं...।
ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बँट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता।
बात बनाएँ, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है।
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है।
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है।
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है।
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है।
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।
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