मैं जो रोया उन की आँखों में भी आँसू आ गए- "अल्लामा 'अनवर' साबरी"

अल्लामा 'अनवर' साबरी- उर्दू शायरी की दुनिया का ऐसा नाम जिसने हमेशा अपने ज़हनमें  ये बात रखी और जिया भी कि दुनिया में अलग-अलग रूप-रंग लेकर सब आते हैं मगर जानवर हो या इंसान सभी में रूह वही होती है जो उसे ज़िंदगी देती है। आज सी न्यूज़ भारत के साहित्य में पेश है अल्लामा 'अनवर' साबरी की कलम से बयां होती कुछ ग़ज़लें...।

वो नीची निगाहें वो हया याद रहेगी,

मिल कर भी न मिलने की अदा याद रहेगी।

मुमकिन है मिरे बाद भुला दें मुझे लेकिन,

ता उम्र उन्हें मेरी वफ़ा याद रहेगी।

जब मैं ही नहीं याद रफ़ीक़ान-ए-सफ़र को,

हैराँ हूँ कि मंज़िल उन्हें क्या याद रहेगी।

कुछ याद रहे या न रहे ज़िक्र-ए-गुलिस्ताँ,

ग़ुंचों के चटकने की सदा याद रहेगी।

महरूम रहे अहल-ए-चमन निकहत-ए-गुल से,

बेगानगी-ए-मौज-ए-सबा याद रहेगी।

पलकों पे लरज़ते रहे 'अनवर' जो शब-ए-ग़म,

मुझ को उन्हीं तारों की ज़िया याद रहेगी।।

उन की महफ़िल में हमेशा से यही देखा रिवाज,

आँख से बीमार करते हैं तबस्सुम से इलाज।

मैं जो रोया उन की आँखों में भी आँसू आ गए,

हुस्न की फ़ितरत में शामिल है मोहब्बत का मिज़ाज।

मेरी ख़ातिर ख़ुद उठाते हैं वो तकलीफ़-ए-करम,

कौन रखता वर्ना मुझ जैसे गुनहगारों की लाज।

मेरे होने और न होने पर ही क्या मौक़ूफ़ है,

मौत पर उन की हुकूमत ज़िंदगी पर उन का राज।

उफ़ वो आरिज़ जिस के जल्वों पर फ़िदा मेहर-ए-मुबीं,

आह वो लब जिन को देते हैं मह ओ अंजुम ख़िराज।

मैं हूँ 'अनवर' उन की ज़ात-ए-पाक का अदना ग़ुलाम,

है सर-ए-अक़दस पे जिन के रहमत-ए-यज़्दाँ का ताज।।

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