“मुस्कुरा कर मुझे यूँ न देखा करो”- देवल आशीष

देवल आशीष- हिंदी काव्य मंचों का ऐसा नाम रहे जिन्होंने जब भी कुछ लिखा तो उसमें डूब कर लिखा और जब उसे गाया तो झूम कर गायाI भगवान श्रीराम के प्रिय अनुज लक्षमण की बसाई नगरी लक्षमण-पुरी, जिसे आज लखनऊ के नाम से जाना जाता है, उसी लखनऊ की सरज़मीं पर जन्मे देवल आशीष श्रृंगार रस के कवि थेI उनकी रचनाओं में हमेशा उनके आराध्य भगवान राधा-कृष्ण की युगलछवि विराजित रही हैI आज देवल आशीष इस दुनिया में नहीं लेकिन उनकी रचनाओं का कोई सानी नहींI कवि देवल आशीष के लिए डॉ. कुमार विश्वास ने खुलेआम मंच पर स्वीकारा था कि देवल जैसी कविताएँ वो कभी लिख न पाए और हमेशा उनसे प्रतिस्पर्धा करते रहे बेहतर लिखने कीI आज सी न्यूज़ भारत के साहित्य में पेश है कवि देवल आशीष की लिखी हुई कुछ कविताएँ...I

मुस्कुरा कर मुझे यूँ न देखा करो,
मृगशिरा-सा मेरा मन दहक जाएगाI

चांद का रूप चेहरे पे उतरा हुआ
सूर्य की लालिमा रेशमी गाल पर
देह ऐसी कि जैसे लहरती नदी
मर मिटें हिरनियाँ तक सधी चाल पर
हर डगर पर संभल कर बढ़ाना क़दम
पैर फिसला, कि यौवन छलक जाएगा

मुस्कुरा कर मुझे यूँ न देखा करो,
मृगशिरा-सा मेरा मन दहक जाएगाI

तुम बनारस की महकी हुई भोर हो
या मेरे लखनऊ की हँसी शाम हो
कह रही है मेरे दिल की धड़कन, प्रिये!
तुम मेरे प्यार के तीर्थ का धाम हो
रूप की मोहिनी ये झलक देखकर
लग रहा है कि जीवन महक जाएगा

मुस्कुरा कर मुझे यूँ न देखा करो,
मृगशिरा-सा मेरा मन दहक जाएगाII

गोपियाँ गोकुल में थीं अनेक परन्तु गोपाल को भा गई राधा,
बांध के पाश में नाग-नथैया को, काम-विजेता बना गई राधाI
काम-विजेता को, प्रेम-प्रणेता को, प्रेम-पियूष पिला गई राधा,
विश्व को नाच नाचता है जो, उस श्याम को नाच नचा गई राधाII

त्यागियों में, अनुरागियों में, बड़भागी थी; नाम लिखा गई राधा,
रंग में कान्हा के ऐसी रंगी, रंग कान्हा के रंग नहा गई राधाI
‘प्रेम है भक्ति से भी बढ़ के’ -यह बात सभी को सिखा गई राधा,
संत-महंत तो ध्याया किए और माखन चोर को पा गई राधाII

ब्याही न श्याम के संग, न द्वारिका या मथुरा, मिथिला गई राधा,
पायी न रुक्मिणी-सा धन-वैभव, सम्पदा को ठुकरा गई राधाI
किंतु उपाधि औ’ मान गोपाल की रानियों से बढ़ पा गई राधा,
ज्ञानी बड़ी, अभिमानी बड़ी, पटरानी को पानी पिला गई राधाII

हार के श्याम को जीत गई, अनुराग का अर्थ बता गई राधा,
पीर पे पीर सही पर प्रेम को शाश्वत कीर्ति दिला गई राधाI
कान्हा को पा सकती थी प्रिया पर प्रीत की रीत निभा गई राधा,
कृष्ण ने लाख कहा पर संग में ना गई, तो फिर ना गई राधाII

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