हारे मन को आज भी शाहस देती हैं शिवमंगल सिंह की कविताएँ
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हिंदी साहित्य जगत में डॉ शिवमंगल सिंह सुमन एक प्रसिद्ध नाम है। इनका जन्म 5 अगस्त 1915 में उन्नाव, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इन्हें साहित्य आकादमी पुरस्कार, पद्म श्री और पद्म भूषण से नवाजा गया था। डॉ शिवमंगल सिंह सुमन हिंदी साहित्य में प्रगतिशील लेखन के अग्रणी कवि रहे थे। डॉ सुमन कहते हैं कि जीवन युद्ध की तरह है और जीवन के इस महा-संग्राम में किसी से भीख मांगने की अपेक्षा वह मरना पसंद करेंगे। अर्थात वरदान मांगने के बजाय अपने स्वाभिमान के बल पर जीवन रुपी महासंग्राम का सामना करना पसंद करेंगे। इन्होंने हिन्दा साहित्य जगत में कई सारी कविताओं की रचना की है। इन्होंने अपनी शिक्षा बनारस के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ग्रहण की है। आइये आपको इनके एक कविता से रूबरू करवाते है।
पढ़िए पूरी कविता....
वरदान मांगूंगा नहीं....
यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही
वरदान माँगूँगा नहीं
लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं
चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भागूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं
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