राष्ट्रकवी रामधारी सिंह दिनकर आज भी हैं युवाओ के प्रेरणा स्त्रोत

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम रवि सिंह था। दिनकर के पिता सामान्य किसान थे, जब उनकी उम्र 2 वर्ष की थी। तभी उनके पिता की देहावसान हो गया। इसलिए दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण उनकी विधवा मां ने किया था। ग़रीबी के कारण उनके परिवार की हालत जरजर हो गई थी। घर में पैसें नहीं होने के कारण रामधारी सिंह दिनकर को पढाई छोड़ने तक की नौबत आ गई थी, तब उनके बड़े भाई ने मेहनत, मजदूरी, किसानी करके उन्हें पढाया। दिनकर का बचपन खेतों, खलियानों, बाग़, बगीचों और प्रकृति के समीप बीता था। दिनकर ने गरीबी का भी सामना किया था शायद यही कारण है की उनकी कविताओं की धार तलवार से भी तेज हैं।

भारत में गुलामी के समय रामधारी सिंह दिनकर अंग्रेजो पर अपनी कविताओं से निशाना साधा और आज़ादी मिलने के बाद भी उन्होंने उसी तेज धार से भारत की हालत पर नेताओं कि आलोचना करते रहे हैं। 1962 में चीन के  हाथों भारत की पराजय से देश की जनता के लिए भारी श्राप जैसा था। भारत की कमजोर विदेश नीति और अशक्त रक्षा नीति को इस हार के लिए जिम्मेदार ठहरा रहें थे। ऐसे में आग, विरोध, विद्रोह और राष्ट्रीय स्वाभिमान को आवाज देने के लिए मशहूर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कैसे चुप रह सकते थे। कविवर दिनकर ने चीन की हार के बाद ही ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ नाम की काव्य पुस्तक की रचना की। उन्होंने इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की गलत नीतियों की कविता के माध्यम से आलोचना किया था।

 

गरदन पर किसका पाप वीर! ढोते हो?

शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो?

उनकाजिनमें कारुण्य असीम तरल था,

तारुण्य-ताप था नहींन रंच गरल था,

सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गए थे,

निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गए थे,

गीता में जो त्रिपिटक-निकाय पढ़ते हैं,

तलवार गला कर जो तकली गढ़ते हैं,

शीतल करते हैं अनल प्रबुद्ध प्रजा का,

शेरों को सिखलाते हैं धर्म अजा का,

 

इन पंक्तियों से दिनकर ने उस दौर के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की तरफ संकेत करते हुए लिखते हैं की जो नेता लोकप्रियता मान कर फुले नहीं समाते हैं और शेरों की तरह रहने वाली भारत की जनता को बकरी का आचरण सिखा रहे है। वैसे ही पापी नेताओं का बोझ हमारे वीर सैनिक ढ़ो रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये नेता तलवार को गलाकर तकली ( सूत काटने में उपयोग होता हैं ) ग़ढ़ते हैं। ऐसी ही नीतियों की वजह से हमारे वीर सैनिकों को शहादत देनी पड़ी हैं। इस हार का दिनकर पर बहूत ही गहरा असर पड़ा था। उन्होंने भारत के पुरुषार्थ को याद करते हुए वीरों और सेनानियों का आह्वान करते हुए दिनकर लिखते हैं- 

 

झकझोरो, झकझोरो महान सुप्तों को,

टेरो-टेरो चाणक्य-चंद्रगुप्तों को,

विक्रमी तेज, असि की उद्दाम प्रभा को,

राणा प्रताप, गोविन्द, शिवा, सरजा को,

वैराग्यवीर, वंदा फकीर भाई को,

टेरो, टेरो माता लक्ष्मीबाई को।

 

 

 

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