पढियें जॉन एलिया की मशहूर ग़ज़लें
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Written by- Arpit Singh Sisodiya
उर्दू के महान शायर जॉन एलिया वर्तमान युवा पीढ़ी के सबसे चहेते शायरों में से हैं. कह सकते हैं कि सोशल मीडिया की दुनिया में जॉन एलिया तेजी से सबसे अधिक बढ़े जाने वाले शायरों में शुमार हैं.जॉन एलिया का जन्म 14 दिसंबर, 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में हुआ था. उनके पिता अल्लामा शफीक हसन एलियाह एक खगोलशास्त्री, अपने समय के मशहूर शायरा और साहित्य-कला प्रेमी थे. जॉन आपको दो तरह से मिलते हैं, एक दर्शन में एक प्रदर्शन में प्रदर्शन का जॉन वह है जो आप आमतौर पर किसी भी मंच से पढ़ें तो श्रोताओं में ख़ूब कोलाहल मिलता है दर्शन का जॉन वह है जो आप चुनिंदा मंचों पर पढ़ सकते हैं और श्रोता उन्हें अपने घर ले जा सकते हैं तो आइये हम आपको जॉन के कुछ मशहूर शायरी से रूबरू करवाते है.
1-मैं शायद तुम को यकसर भूलने वाला हूँ
शायद जान-ए-जाँ शायद
कि अब तुम मुझ को पहले से ज़ियादा याद आती हो
है दिल ग़मगीं बहुत ग़मगीं
कि अब तुम याद दिलदाराना आती हो
शमीम-ए-दूर-माँदा हो
बहुत रंजीदा हो मुझ से
मगर फिर भी
मशाम-ए-जाँ में मेरे आश्ती-मंदाना आती हो
जुदाई में बला का इल्तिफ़ात-ए-मेहरमाना है
क़यामत की ख़बर-गीरी है
बेहद नाज़-बरदारी का आलम है
तुम्हारे रंग मुझ में और गहरे होते जाते हैं
मैं डरता हूँ
मिरे एहसास के इस ख़्वाब का अंजाम क्या होगा
ये मेरे अंदरून-ए-ज़ात के ताराज-गर
के बैरी वक़्त की साज़िश न हो कोई
तुम्हारे इस तरह हर लम्हा याद आने से
दिल सहमा हुआ सा है
तो फिर तुम कम ही याद आओ
मता-ए-दिल मता-ए-जाँ तो फिर तुम कम ही याद आओ
बहुत कुछ बह गया है सैल-ए-माह-ओ-साल में अब तक
सभी कुछ तो न बह जाए
कि मेरे पास रह भी क्या गया है
कुछ तो रह जाए
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2-चाहता हूँ कि भूल जाऊँ तुम्हें
और ये सब दरीचा-हा-ए-ख़याल
जो तुम्हारी ही सम्त खुलते हैं
बंद कर दूँ कुछ इस तरह कि यहाँ
याद की इक किरन भी आ न सके
चाहता हूँ कि भूल जाऊँ तुम्हें
और ख़ुद भी न याद आऊँ तुम्हें
जैसे तुम सिर्फ़ इक कहानी थीं
जैसे मैं सिर्फ़ इक फ़साना था
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3-बे-करारी सी बे-करारी है
वस्ल है और फ़िराक तारी है
जो गुजारी न जा सकी हम से
हम ने वो जिंदगी गुजारी है
निघरे क्या हुए कि लोगों पर
अपना साया भी अब तो भारी है
बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मिरी नींद भी तुम्हारी है
आप में कैसे आऊं मैं तुझ बिन
सांस जो चल रही है आरी है
------------ जॉन एलिया---------
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