पढ़िए पद्म भूषण गुलज़ार की बेहतरीन कविताएं


सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ़ गुलज़ार भारतीय गीतकार,कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार हैं। गुलजार को हिंदी सिनेमा के लिए कई प्रसिद्ध अवार्ड्स से भी नवाजा जा चुका है. उन्हें 2004 में भारत के सर्वोच्च सम्मान पद्म भूषण से भी नवाजा जा चूका है. इसके अलावा उन्हें 2009 में डैनी बॉयल निर्देशित फिल्म स्लम्डाग मिलियनेयर मे उनके द्वारा लिखे गीत जय हो के लिये उन्हे सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार पुरस्कार मिल चुका है. इसी गीत के लिये उन्हे ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.इनका जन्म 18 अगस्त 1936 को भारत के जेहलम जिला पंजाब के गांव दीना में हुआ था. जो अब बटवारे के बाद पाकिस्तान में हैं. गुलज़ार एक प्रसिद्ध गीतकार, लेखक, कवि, पटकथा लेखक, निर्देशक एवं नाटककार हैं. 60 के दशक से बतौर गीतकार अपना करियर शुरू करने वाले गुलज़ार ने कई बेहतरीन कविताएं भी लिखी हैं. पेश हैं उनकी कुछ चुनिंदा कविताएं.

1- ‘छैंया-छैंया’ के बैक कवर से

रोज़गार के सौदों में जब भाव-ताव करता हूँ
गानों की कीमत मांगता हूँ –
सब नज्में आँख चुराती हैं
और करवट लेकर शेर मेरे
मूंह ढांप लिया करते हैं सब
वो शर्मिंदा होते हैं मुझसे
मैं उनसे लजाता हूँ
बिकनेवाली चीज़ नहीं पर
सोना भी तुलता है तोले-माशों में
और हीरे भी ‘कैरट’ से तोले जाते हैं
मैं तो उन लम्हों की कीमत मांग रहा था
जो मैं अपनी उम्र उधेड़ के,साँसें तोड़ के देता हूँ
नज्में क्यों नाराज़ होती हैं ?

2-  न जाने क्या था, जो कहना था

न जाने क्या था, जो कहना था
आज मिल के तुझे
तुझे मिला था मगर, जाने क्या कहा मैंने

वो एक बात जो सोची थी तुझसे कह दूँगा
तुझे मिला तो लगा, वो भी कह चुका हूँ कभी
जाने क्या, ना जाने क्या था
जो कहना था आज मिल के तुझे

कुछ ऐसी बातें जो तुझसे कही नहीं हैं मगर
कुछ ऐसा लगता है तुझसे कभी कही होंगी
तेरे ख़याल से ग़ाफ़िल नहीं हूँ तेरी क़सम
तेरे ख़यालों में कुछ भूल-भूल जाता हूँ
जाने क्या, ना जाने क्या था जो कहना था
आज मिल के तुझे जाने क्या…

3-  बैरागी बादल

बैरागी बादल बैरागी बादल
बैरागी बादल आए
आये रे बादल आए…

आते हैं जैसे आर्य आए
गर्जाते घोड़े, रथ दौड़ाते
बिजली के बरछे चमकाते
आए रे बादल आए…
बैरागी बादल, बैरागी, बैरागी बादल आए…

बंजारों जैसे ख़ेमे उठाए
पानी की मश्कें कांधों पे लाए
बोरीयां-भर दाने बरसाए
आए रे आए…
बैरागी बादल, बैरागी, बैरागी बादल आए…

4- आवारा रहूँगा

रोज़े-अव्वल ही से आवारा हूँ आवारा रहूँगा
चांद तारों से गुज़रता हुआ बन्जारा रहूंगा

चांद पे रुकना आगे खला है
मार्स से पहले ठंडी फ़िज़ा है 
इक जलता हुआ चलता हुआ सयारा रहूंगा
चांद तारों से गुज़रता हुआ बनजारा रहूंगा
रोजे-अव्वल ही से आवारा हूँ आवारा रहूँगा

उलकायों से बचके निकलना
कौमेट हो तो पंख पकड़ना
नूरी रफ़तार से मैं कायनात से मैं गुज़रा करूंगा
चांद तारों से गुज़रता हुआ बनजारा रहूंगा
रोजे-अव्वल ही से आवारा हूँ आवारा रहूँगा

                                 
                                       ------------सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ़ गुलज़ार -------------------

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