अलका सिन्हा कि कविता-'मेरे भीतर रहता है देश'

 वर्तमान हिंदी साहित्य संसार में अलका सिन्हा एक चर्चित नाम हैं  और 74वां गणतन्त्र दिवस के खास अवसर पर उन्होंने अपनी एक नयी कविता लिखी हैं -'मेरे भीतर रहता है देश'

तो आइये पढ़ते हैं अलका सिन्हा की शानदार कविता

पासपोर्ट के कागज पर लिखा हुआ

नाम भर नहीं है मेरा देश

कि जब चाहो लगाकर एक मोहर

कर लो उसमें प्रवेश

सीमा रेखाओं की भौगोलिक हदों में

महदूद नहीं होता देश

देश होता है

जिसके भीतर रहती हूं मैं

और

मेरे भीतर रहता है देश।

 

मैं खुश होती हूं, हंसती हूं

तो मुस्काता है देश

मैं पढ़ती हूं, तो पढ़ता है देश

चढ़ती हूं सीढ़ियां, बढ़ती हूं आगे

तो बढ़ता है देश।

 

भावनाओं से खिलवाड़

सिद्धांतों से समझौता

झकझोरता है तोड़ता है मुझे

मेरे देश को

मेरी लाचारी, मेरी बीमारी

बीमार कर देती है देश को

बिवाई-सी फट जाती है उसके भीतर

वह तड़पता है, छटपटाता है

रुग्ण हो जाता है

उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है।

 

पर अगर मैं रहती हूं दृढ़

सहती हूं अंधड़-पानी

तो वह भी चट्टान हो जाता है

खुद पर इतराता है।

 

मैंने कहा न

देश के भीतर रहती हूं मैं और

मेरे भीतर रहता है देश।

जब किसी की बद-नज़र

मेरे देश पर पड़ती है

तो सीने में खंजर-सी गड़ती है

खेतों में फसलों की जगह

बंदूकें उग आती हैं

सुखोई, राफेल-सी चक्कर लगाती हैं

भयंकर गर्जन, शिव नर्तन

तांडव रचाता है और तब

सीमा पर लड़ते सैनिक की आंखों में

देश उतर आता है

क्योंकि देश के भीतर रहते हैं हम

और हमारे भीतर रहता है देश।

 

मेरे देश का रंग अनूठा है, निराला है

यहां की मिट्टी में चंदन है

खेतों में सोना

भुजाओं में फड़कती हैं

हिमालय की चोटियां

पैरों में गहरा सागर लहराता है

घर-घर में जलती हैं दीपशिखाएं

आकाश को छूती हैं सुवासित हवाएं

इसी धरती, आकाश, जल, अग्नि और वायु में

धड़कता है मेरा देश

इसी धरती, आकाश, जल, अग्नि और वायु से

धड़कती हूं मैं

इसीलिए कहती हूं

पासपोर्ट के कागज पर लिखा हुआ

नाम भर नहीं है मेरा देश

देश के भीतर रहती हूं मैं

और मेरे भीतर रहता है देश। 

Leave a Reply



comments

Loading.....
  • No Previous Comments found.