सन्धि-वचन संपूज्य उसी का, जिसमें शक्ति विजय की

मनुष्य के जीवन में शक्ति की बहुत ज़रूरत होती हैं. अगर उसने अपने जीवन में किसी प्रकार की शक्ति अर्जित नहीं की तो वो हमेशा दब के जीने के लिए विवश होगा. उसे शक्तिशाली कदम कदम पर ठोकर देंगे. उसे सेहना पड़ेगा. सर झुका के रहना होगा. शक्ति विहीन व्यक्ति धोबी के कुत्ते के समान हैं. अगर कोई शक्तिहीन व्यक्ति किसी को कहता हैं. मैंने उसे माफ़ कर दिया तो वो झूठ बोल रहा हैं. इसके अलावा उसके पास और कोई रास्ता नहीं हैं.

 विवश होने के कारण उसे वो कहता पड़ता हैं मैंने माफ़ कर दिया हैं क्षमा कर दिया हैं. उसे लगता हैं की लोग कहेंगे वो बड़ा उद्दार हृदय वाला व्यक्ति हैं. लेकिन सच सबकों पता हैं किसमे दंड देने की क्षमता हैं और किसमे नही हैं. इसी को लेकर हमारें राष्ट्रिय कवि रामधारी सिंह दिनकर ने कविता लिखी थी. आइयें आपकों उस कविता से परिचय कराते हैं जो आपकों सत्य के अवगत कराएंगी.

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा?

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।

तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।

उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।

सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।

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