ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे- बेहतरीन नज्म ख़ास आप प्रेमियों के लिए

हमने प्रेम के कई खिस्से सुने हैं कई कहानियां पढ़ी हैं. कभी हीर रांझा, कभी लैला मजनू, कभी सलीम और अनारकली ये जितने भी बड़ें इश्क़ के नाम हैं, इन्हें प्रेमियों के सल्तनत में बादशाह कहा जाता हैं इनका ओहदा बहुत ही ऊंचा होता है. इश्क़ एक दर्शन हैं इसे समझना बहुत ही सरल हैं लेकिन जो सरल हैं वही जब संसार की नियमों कानूनों में बंध जाती हैं तो वो बाध्य हो जाती हैं. उसकी आज़ादी कैद हो जाती हैं फिर या तो उसे समय की प्रस्थिति दबा देती हैं या तो उसकी अक्षमता उसे अपने प्रेम से दूर जाने को बेबस कर देती हैं. हर दौर में अकबर जैसे प्रेम के विरोधी रहे हैं तानाशाहों से इश्क़ का इतिहास हमेशा से रक्त रंजित रहा हैं. 

कभी-कभी प्रेमी इनके गुलाम भी हो जाते हैं उनके लब को शील दिया जाता हैं ताकि वो बोल न सके कभी उन्हें मार दिया जाता हैं ताकि प्रेम का अस्तित्व ख़तम हो जाये लेकिन ऐसा होना नामुमकिन हैं क्योकि प्रेम प्रकृति हैं ये तो कुदरत का सहज स्वभाव हैं इसे कैसे नष्ट किया जा सकता हैं. हवा का चलना वो हवा का मिज़ाज हैं. उसे कोई बाध्य तो नहीं कर सकता वैसे ही प्रेम हैं, इश्क़ हैं, ईश्वर हैं, इश्क़ में कोई अपने अकीदों {विचारधारा} पर चल कर प्रेम को अमर कर देता हैं. कभी कवि उनके बारें में लिखकर बोल कर उनके अहसाह, जज्बात को लोगों के सामने रख कर उन्हें अमर कर देता हैं. तो आइये हम आपको आज इस आर्टिकल में ऐसे ही कुछ शायरी, नज्म पर आपका ध्यान दिलाएंगे जिसे पढ़ कर आपका दिन बन जायेगा. 

1- बड़े शौक़ से मिरा घर जला 

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है
बड़े शौक़ से मिरा घर जला कोई आँच तुझ पे न आएगी
ये ज़बाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है

2-दिल उम्र भर लगेगा नहीं 

बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं 
लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं
नहीं लगेगा उसे देख कर मगर ख़ुश है 
मैं ख़ुश नहीं हूं मगर देख कर लगेगा नहीं
हमारे दिल को अभी मुस्तक़िल पता न बना 
हमें पता है तेरा दिल इधर लगेगा नहीं

3-मैं इश्क़ लिखूँ तुझे हो जाए

कुछ उल्टा सीधा फ़र्ज़ करूँ
कुछ सीधा उल्टा हो जाए
मैं आह लिखूँ तू हाय करे
बेचैन लिखूँ बेचैन हो तू
फिर बेचैन का बे काटूँ

तुझे चैन ज़रा सा हो जाए
अभी ऐन लिखूँ तू सोचे मुझे
फिर शीन लिखूँ तेरी नींद उड़े
जब क़ाफ़ लिखूँ तुझे कुछ कुछ हो
मैं इश्क़ लिखूँ तुझे हो जाए

4-एक मैं और सेकड़ों जल्लाद 

छेड़ते क्यों हो दिल के दागों को
 क्यों बुझाते हो इन चरागों को
बोल रब्बा अब मैं किस तरफ़ जाऊ 
अब झोली किसके तरफ़ फैलाऊ 

कोई मुझपर तरस नहीं खाता
 कोई पत्थर पिघल नहीं पाता 
कोई सुनता नहीं मेरी फ़रियाद 
एक मैं और सेकड़ों जल्लाद

5-अगर मर जाइए तो नौहा-ख़्वां कोई न हो

रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहां कोई न हो
हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बां कोई न हो

बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिए
कोई हम-साया न हो और पासबां कोई न हो

पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाइए तो नौहा-ख़्वां कोई न हो

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