सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है - बिस्मिल आज़िमादी


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. इसको लिखा हैं बिस्मिल आज़िमादी ने हैं. ये आज़ादी के दौर में नेशनल स्लोगन के रूप में उभर के सबके सामने आया था. यहा तक की शहीदे आज़म भगत सिंह ने भी इसका खूब इस्तेमाल किया था अपनी लड़ाई को मजबूत बनाने के लिए और यह आज भी उतनी ही प्रसिद्ध हैं. आज भी छात्र अपने हक़ और अधिकारों के लिए सड़क पर उतरते हैं. तो ज्यादातर यही उनका भी नारा होता हैं. तानाशाह के विरोध में फ़ीस वृद्धि के विरोध में होस्टल की कमी के कारण जब छात्र इन समस्यायों से जूझ रहे होते हैं तो इन्कलाब की आग लेकर वो सड़क पर निकल आते हैं.  

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है

वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है

रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है

शौक़ से राह-ए-मोहब्बत की मुसीबत झेल ले
इक ख़ुशी का राज़ पिन्हाँ जादा-ए-मंज़िल में है

आज फिर मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
आएँ वो शौक़-ए-शहादत जिन के जिन के दिल में है

मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है

माने-ए-इज़हार तुम को है हया, हम को अदब
कुछ तुम्हारे दिल के अंदर कुछ हमारे दिल में है

मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है

वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है

अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में हैं 

                      ------ बिस्मिल आज़िमादी -------

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