सामंतवाद पर कठोर प्रहार करती है वाल्मीकि की कविता, ठाकुर का कुआँ

भारतीय साहित्य जगत में बहुत से बड़े-बड़े है लेकिन ओमप्रकाश वाल्मीकि क़ा नाम ऐसे दिखाई देता है जैसे तारों के बिच में चंद्रमा हो. वाल्मीकि लेखक के अलावा नाटककार और अभिनेता व नाट्य निर्देशक भी थे. ओमप्रकाश वाल्मीकि ने ‘दलित साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र’ लिखकर आपने आलोचकों को जवाब दिया था जो दलित साहित्य में शिल्पकला की कमी बताते थे. उनकी कहानियों में ‘अम्मा’, ‘बिरम की बहू’, ‘सलाम’’, ‘पच्चीस चौके डेढ़ सौ’ आदि उल्लेखनीय कहानियां हैं. उन्होंने कांचा इलैया की पुस्तक ‘व्हाई आई एम नाट अ हिन्दू’ का हिन्दी में अनुवाद किया. उन्होने ‘सफाई देवता’ लिखकर सफाई कर्मचारी समुदाय के इतिहास में भी झांकने की कोशिश की. उन्होंने ठाकुर का कुआ लिखकर सामंतवाद पर प्रहार किया और आज के समय में उनकी कविता और भी प्रासंगिक हो जाती है. भारत में जहा कुछ प्रतिशत लोगो के पास सबसे ज्यादा पैसा है. देश के बड़े बड़े संसाधनों को उनका अधिकार है. वही दूसरी तरफ़ लाखों लोग एक समय के खाने के लिए भी मोहताज है. ओमप्रकाश वाल्मीकि लेखक के अलावा नाटककार और अभिनेता व नाट्य निर्देशक भी थे. वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. आपके लिए प्रस्तुत है उनकी बहुचर्चित कविता "ठाकुर का कुवा"

ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता "ठाकुर का कुवा"

चूल्हा मिट्टी का

मिट्टी तालाब की

तालाब ठाकुर का।

भूख रोटी की

रोटी बाजरे की

बाजरा खेत का

खेत ठाकुर का।

बैल ठाकुर का

हल ठाकुर का

हल की मूठ पर  हथेली अपनी

फसल ठाकुर की।

कुआं ठाकुर का

पानी ठाकुर का

खेत खलिहान ठाकुर का

गली मोहल्ले ठाकुर के

फिर अपना क्या

गाँव?

शहर?

देश?

                                -------------  ओमप्रकाश वाल्मीकि -------------------

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