आख़िर रावण ने अंगद का पैर क्यों पकड़ा

भारत मर्यादायों और संस्कारों का देश रहा है, यहाँ की मिट्टी पहले शांति फिर क्रांति को जन्म देती है. ऐसी ही एक बात है रामायण युग की है जब भगवान श्री राम लंका पति रावण को संधि प्रस्ताव भेजते है और कहते है की यदि रावण माता सीता को सम्मान सहित वापस कर देता है तो वो उसे क्षमा कर देंगे और सेना सहित वापस चले जायेंगे.
 

इस प्रस्ताव को ले जाने के लिए एक मजबूत व्यक्तित्व वाले व्यक्ति की जरुरत थी श्री राम ने कहा दूत ऐसा होना चाहिए जो परम बुद्धिमान हो महावीर भी हो क्योकि रावण जैसा शत्रु किसी समय भी क्षल कर सकता है. सभी के मत से इस बार अंगद जी को भेजा गया. श्री राम का यह संधि प्रस्ताव अबकी बार अंगद जी लेके जाने वाले थे. अंगद किष्किंधा के राजकुमार थे और महान शक्तिशाली राजा बालि के पुत्र थे. और बहुत ही चतुर बहादुर व धैर्यवान व्यक्ति थे.दूत अंगद ने ऐसा क्‍या किया कि न केवल लंकेश ने उनके पैर पकड़े बल्कि उनका पूरा दरबार सहम सा गया. आइए जानते हैं….

अंगद ने राक्षस से अपने आने का संदेश भिजवाया. इसपर हंसते हुए रावण ने कहा कि बुला लाओ बंदर को. देखें कहां का बंदर है. तब अंगद जी प्रवेश करते हैं और रावण पूछता है कि अरे बंदर तू कौन है? इसपर अंगद जी श्रीराम जी के दूत होने का पर‍िचय देते हैं. वह रावण को कई तरह से समझाते हैं कि वह श्रीराम की शरण में चलें. वह उनके सारे अपराधों को माफ कर देंगे.

अंगद-रावण संवाद 

अंगद कहते हैं कि तुमने उत्‍तम कुल में जन्‍म लिया है. पुलस्‍त्‍य ऋषि के पौत्र हो. श‍िवजी और ब्रह्माजी की पूजा करके तुमने कई तरह के वर पाए हैं. लोकपालों और राजाओं को तुमने जीता है. श्रीअंगद कुमार आगे कहते हैं कि राजमद या मोहवश तुमने माता सीता का हरण किया है. लेकिन मेरी तुम्‍हें यह हितकारी सलाह है कि अभी भी तुम यदि अपनी भूल स्‍वीकार कर लो और श्रीराम की शरण में आ जाओ तो वह तुम्‍हें क्षमा कर देंगे. अंगद कुमार की इन बातों पर रावण उनका उपहास करते हैं और अपनी वीरता की गाथा सुनाने लगता है कहता है की बंदरों की सेना को तो हमारी सेना कुछ ही क्षणों में धूमिल कर देगी. इसपर अंगद जी को बहुत क्रोध आया उन्हें रावण के पुरे दरबार को चुनौती दे डाली. कथा मिलती है कि तभी सभा में अंगद जी कहते हैं कि यद‍ि कोई वीर है तो उनके पैर को जमीन से उठाकर द‍िखाए. यदि किसी ने भी ऐसा कर दिया तो हम हार मान कर अपनी पूरी सेना वापस लेके के चले जायेंगे. रावण की सभा में बैठे महान पराक्रमी योद्धा एक-एक करके जाते हैं. लेकिन कोई भी अंगद का पैर टस से मस भी नहीं कर पाता. तब रावण का पुत्र इंद्रजीत भी अंगद के पैर को पकड़ता है लेकिन उसका प्रयास भी विफल रहता है. यह देखकर दरबार के सभी लोग सहम जाते हैं.

अंगद ने दिया रावण को आख़री संदेस 

जब पूरी सभा के लोग हार मानकर बैठ जाते हैं तो रावण स्‍वयं अंगद के पैर पकड़ने के लिए जाता है. लेकिन उनके पहुंचते ही अंगद कुमार अपना पैर हटाकर कहते हैं कि तुम मेरे पांव क्‍यों पकड़ते हो. पकड़ना ही है तो तीनों लोकों के स्‍वामी श्रीराम के पैर पकड़ो. वह शरणागतवत्‍सल हैं. तुम उनकी शरण में जाओगे तो तुम्‍हारे प्राण अवश्‍य बच जाएंगे. अन्‍यथा युद्ध में बंधु-बांधवों समेत तुम्‍हारी मृत्‍यु भी तय है.

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