आखिर क्यों शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है जल और बेलपत्र, पढ़ें इसके पीछे पौराणिक कथा

सोमवार का दिन भगवान शिव (Lord Shiva)को समर्पित है. ऐसे में कहा जाता है कि अगर सोमवार को भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा की जाए तो सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएँ पूरी होती है. शिव जी हमेशा अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को खुश करने के लिए सोमवार को सुबह उठकर स्नान करके भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए. इस दिन भगवान शंकर के साथ माता पार्वती और नंदी को गंगाजल चढ़ाना चाहिए. साथ ही इस दिन शिव जी पर खास तौर से चंदन, अक्षत, बिल्व पत्र, धतूरा या आंकड़े के फूल चढ़ाने चाहिए. ये सभी चीजें भगवान शिव की प्रिय हैं, इन्हें चढ़ाने पर भोलेनाथ खुश होकर अपनी कृपा बरसाते हैं. सोमवार के दिन भगवान शिव को घी, शक्कर और गेंहू के आटे से बने प्रसाद का भोग लगाना चाहिए.

क्या आपको पता है कि, भगवान शिव को बिल्वपत्र बहुत प्रिय है. भोलेनाथ को जल चढ़ाते समय बेलपत्र भी चढ़ाया जाता है. आइए आपको बताते हैं कि क्यों भगवान शिव की पूजा में बिल्वपत्र का इस्तेमाल किया जाता है.

क्या है पौराणिक कथा?

एक बार देवता और दानव के बीच समुद्र मंथन हुआ था. इस समुद्र मंथन में अच्छी और बुरी दोनों तरह की चीज़ें निकली थी. समुद्र मंथन के दौरान एक विष निकला जिसका नाम हलाहल था. यह विष इतना प्रभावशाली था कि सारे संसार की तरफ बढ़ेने लगा. सभी देवता उस विष के जानलेवा प्रभाव के आगे कमज़ोर नज़र आने लगे. किसी में इतनी शक्ति नहीं थी कि उस विष के प्रभाव को रोक सके. उस समय भगवान शिव ने पूरे संसार को बचाने के लिए इस विष का पान कर लिया, और इसे अपने कंठ में ही धारण करे रखा, विष अत्यंत प्रबावशाली होने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया. तभी उनका नाम नील कंठ पड़ा.

अति विषैले प्रभाव के कारण भगवान शिव का शरीर तपने लगा और अत्यधिक गरम हो गया. इसी कारण आस-पास का वातावरण भी जलने लगा. मान्यता के अनुसार बेल पत्र विष के प्रभाव को कम करता है. जिसके कारण भगवान शिव को देवताओं ने बेल पत्र खिलाना शुरु किया. साथ ही भोलेनाथ को शीतल रखने के लिए उन पर जल भी अर्पित किया गया. जिससे उन्हें काफी आराम मिला और उनके शरीर की तपन कम हुई. तभी से भगवान शिव पर बेल पत्र और जल अर्पित करने के परम्परा चली आ रही है. जिसे आज तक निभाया जा रहा है.

जलाभिषेक के क्या नियम होते हैं?

  • हमेशा जलाभिषेक शिवलिंग का ही किया जाता है. वहां मौजूद अन्य देवी देवता का जलाभिषेक नहीं करना चाहिए.
  • जलाभिषेक के समय जल में तुलसी पत्ता ना डालें, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव पर तुलसी अर्पित करना निषेध माना गया है.
  • जलाभिषेक करने के बाद कभी भी शिवलिंग की पूरी परिक्रमा ना करें. क्योंकि जो जल शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है उसके बाहर निकले की व्यवस्था को गंगा माना जाता है. मान्यता के अनुसार माता गंगा को कभी भी लांघा नहीं जाता.
  • मंदिर में कभी भी पूजा-अर्चना या जलाभिषेक करते समय शिवलिंग को स्पर्श नहीं करना चाहिए.
  • मान्यता है कि भगवान शिव का जलाभिषेक या रुद्राभिषेक उचित मंत्रोच्चार के साथ करने से ही लाभ होता है.
  • मंदिर में किसी भी प्रकार की बातचीत करने से बचना चाहिए. साथ ही मंदिर में 12 से 4 के बीच कभी नहीं जाना चाहिए.
  • भगवान शिव पर चढ़ाई गई सामग्री, द्रव्य, वस्त्र आदि पर पूजा अनुष्ठान करवाने वाले व्यक्ति का ही अधिकार मान्य होता है किसी अन्य का नहीं.

 

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