चुनाव की प्रकिया से आहत होता लोकतंत्र-लेखिका - सुनीता कुमारी

आलेख-लेखिका - सुनीता कुमारी

 जिस रस्सी के सहारे हम किला फतह करते है वही रस्सी अगर गले गले में लिपट जाये तो फिर कौन बचा सकता है?

यही हाल हमारे देश की राजनीतिक का है।
आजाद भारत का सपना देखनेवाले अनगिनत युवाओ ने अपने जान की आहुति दी ,इसलिए ताकि अन्य स्वतंत्र और विकसित देशो की तरह हमारा देश भी स्वतंत्र और विकसित हो ।आजादी के बाद भारत को लोकतंत्र घोषित किया गया और चुनाव की प्रकिया के द्वारा जनप्रतिनिधि के माध्यम से शासन की व्यवस्था की गई।मगर यही चुनाव भारत के लोकतंत्र में गले में लिपटी रस्सी बन गई है?देश के विकास में बाधक बन रही है।
"एक देश एक चुनाव की जगह ,एक देश चुनाव अनेक "
की व्यवस्था ने देश की प्रगति का मार्ग में बाधा खड़ी कर दी है।
लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव, पंचायत चुनाव, नगर निकाय चुनाव, छात्रसंघ चुनाव, एम एल सी चुनाव आदि आदि? ने देश की सारी राजनीतिक पार्टियो का ध्यान पूरे चुनावी सत्र में चुनाव पर ही लगा रहता है।इन्हे चुनाव की रणनीति ,चुनाव प्रचार, चुनाव की व्यवस्था, वोट की गिनती
पार्टी के द्वारा चुनाव जीतने की जद्दोजहद कारण देश की सारी पार्टीयो का ध्यान मात्र चुनाव में लगा रहता है लोकसभा से लेकर पंचायत चुनाव तक में चुनावी पार्टियों में का ध्यान लगा रहता है।राष्ट्रीय स्तर के बड़े पार्टी भी साल-भर चुनाव की तैयारी में लगे रहते है ।प्रत्येक वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव अवश्य होता है और सारे पक्ष विपक्ष के नेताओ का सारा ध्यान चुनाव में ही लगा रहता है तो भला विकास का काम कब करेगे?
शासन करनेवाले हाथो में विकास के प्रपत्र की जगह चुनाव प्रचार का पर्चा होता है तो भला विकास कैसे होगा?
वर्तमान समय में भारत में कुल 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं। अगस्त 2019 से पहले भारत में कुल 29 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश थे। लेकिन 5 अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटने के बाद, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया। इससे भारत में राज्यों की संख्या 29 से घटकर 28 हो गई। और केंद्र शासित प्रदेशो की संख्या 7 से बढ़कर 8 हो गई,और प्रत्येक वर्ष हर आठ या नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होते है एवं आठ नौ राज्यों में पंचायत या नगर निकाय चुनाव होते है मतलब यह कि, प्रत्येक साल पूरे वर्ष भर कही न कही चुनाव होते रहते है और देश का सारा सिस्टम इस चुनाव की प्रकिया में लगा रहता है फिर विकास की बात बेमानी सी
 लगती है।
जितना पैसा देश का चुनाव में खर्च किये जाते है उसे यदि देश विकास में लगाया जाए तो स्थिति बेहतर होगी।पार्टी द्वारा चुनाव में किया जानेवाला खर्च भी भ्रष्टाचार को बढावा दे रहा है क्योंकि राजनीतिक पार्टी चुनाव आयोग को जो खर्च का विवरण देती है ,पार्टी उससे कही ज्यादा खर्च करती है जिसमें ज्यादातर पैसा कालाधन होता है जिसे गलत तरीके से राजनीतिक पार्टी चुनाव के लिए इकठ्ठा करती है।
पार्टी के टिकट के लिए टिकट की भी बोली लगती है जो व्यक्ति  जितना ज्यादा पैसा राजनीतिक दल को देता है उसे पार्टी का टिकट हासिल होता है।और न जाने कितनी ही विकृति हमारे देश में चुनाव की वजह से आई है जिसने देश में भ्रष्टाचार को बढा दिया है ?देश के विकास में लगने वाला धन चुनावी प्रकिया में लगकर देश का नुकसान कर रही है।
चुनाव प्रचार के दौरान भी उम्मीदवारों द्वारा जमकर खर्च किया जाता है ,जो रूपयों की बर्बादी के सिवा और कुछ भी
 नही है।
देश के विकास के लिए चुनाव की जो प्रकिया देश में चल रही है उसमें सुधार होना अतिआवश्यक है।एक राष्ट्र एक चुनाव का नियम होना जरूरी है।माना की पूरे देश में एकसाथ बड़े पैमाने पर चुनाव होना मुश्किल है परंतु लोकसभा की तरह ही विधान सभा  एवं अन्य चुनाव एकसाथ पुरे देश में करवाए जाए तो सुधार की स्थिति बन पायेगी ।

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