विश्व जल दिवस पर जानें इससे जुड़े मांडू की जल संरचना का इतिहास और महत्व

धार :   विश्व जल दिवस आज हम आपको मांडू की प्राचीन जल संरचना के बारे में बताने जा रहे हैं, एक समय ऐसा था मांडू में जहां पानी के कई साधन थे, आज बूंद बूंद पानी के लिए मांडू में गर्मी में लातुर जैसे हालात देखने को मिलते हैं। देखरेख के  अभाव में यह जल संरचनाएं नष्ट होती जा रही है। शासन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के दावे मांडू की जल संरचनाओं पर खोखले साबित हो रहे हैं। मांडू के जहाज महल सहित रानी रूपमती महल बाज बहादुर महल हो या मांडू के तालाब हुए बावड़ी में इसके प्रमाण आज भी देखने को मिलते हैं। उनके प्रति अनदेखी क्यों की जा रही है।

 इतिहास में इस बात के प्रमाण हैं कि मांडू में कभी 12 सौ कुएं, बावड़ियां और तालाब थे। ये सभी जल संरचनाएं एक-दूसरे से अंडर ग्राउंड कनेक्ट थी। मांडू की जल संरचनाओं की तुलना फ्रांस के वेनिस शहर से की जाती है। वाटर स्टोरेज, वाटर डिस्ट्रीब्यूशन और वाटर रिचार्ज जैसी तकनीक यहां हजार वर्ष पूर्व उन्नात इंजीनियरिंग का नमूना है।
पहाड़ी पर बसा ऐतिहासिक शहर मांडू कभी जल प्रबंधन का शोध केंद्र था। इतिहास में इसे जल नगरी भी कहा जाता है। वैज्ञानिक यहां की जल संरचनाओं को देख अचंभित रह जाते थे। ऊंचाई पर बसे मांडू में बारिश के पानी को अद्भुत तकनीकों से संग्रहित कर बड़े स्तर पर खेती पशुपालन और नौ लाख की आबादी के लिए जल का प्रबंध किया गया था। इतिहास में इस बात के प्रमाण हैं कि मांडू में कभी 12 सौ कुएं, बावड़ियां और तालाब थे। ये सभी जल संरचनाएं एक-दूसरे से अंडर ग्राउंड कनेक्ट थी।

मांडू की जल संरचनाओं की तुलना फ्रांस के वेनिस शहर से की जाती है। वाटर स्टोरेज, वाटर डिस्ट्रीब्यूशन और वाटर रिचार्ज जैसी तकनीक यहां हजार वर्ष पूर्व उन्नात इंजीनियरिंग का नमूना है। पहाड़ पर बसे इस दुर्ग पर जल प्रबंधन को लेकर दिक्कत थी। ऐसे में परमार काल में यहां जल संरचनाओं का निर्माण हुआ था, जो आज भी यहां देखने को मिलती है। इतिहासकारों के अनुसार लाखों की आबादी वाले शहर में साम्राज्य के लिए जल का प्रबंध करना एक चुनौती था। इसी के बाद विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में समुद्र तल से 633 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस नगरी में जल प्रबंधन को लेकर ऐसा काम हुआ, जो आज भी इतिहास की धरोहर है।

500 वर्ष पूर्व होती थी वाटर हार्वेस्टिंग

यहां 500 वर्ष पूर्व वाटर हार्वेस्टिंग के प्रमाण मिलते हैं। इसके बाद अफगानी शासकों का राज आया और उन्होंने परफ्यूम व्हील तकनीक के माध्यम से महल के ऊपरी हिस्सों में जलाशयों का निर्माण कर वहां जल पहुंचाया। इन जल संरचनाओं को आज भी देखा जा सकता है।

प्राचीन समय में यहां संग्रहित जल से होती थी बड़े पैमाने पर खेती किसानी

लगभग एक हजार वर्ष पूर्व में यहां बड़े पैमाने पर खेती होती थी। यह बात भी आश्चर्यचकित कर देने वाली है कि पहाड़ी पर बसे मांडू में संग्रहित जल के माध्यम से ही सिंचाई होती थी। बारिश के जल को इतनी बड़ी मात्रा में अनेक जलाशयों के माध्यम से यहां संग्रहित किया जाता था।

नहीं  बदले हालात, वर्तमान समय में मांडू प्राचीन पर्यटन नगरी  जलसंकट से झुंज रही है

देखरेख के अभाव में अब ये जल संरचनाएं नष्ट हो चुकी हैं। गर्मी में यहां  लातुर जैसे हालात हो जाते हैं, आज हालत यह है कि मांडू नगर और आसपास के इलाकों में गर्मी आते आते ही, भीषण जलसंकट गहराने लगता है यहा। यहां जलापूर्ति टैंकरों के माध्यम से करनी पड़ती है। हालांकि आज तक नर्मदा परियोजना का काम पूरा नही हो सका है, और धरमपुरी से मांडू पानी कब पहुंचेगा, लेकिन इतिहासकारों का मत है कि इन जल संरचनाओं को पुनर्जीवित किया जाए और इस पर बड़े स्तर पर काम किया जाए, तो यह जल प्रबंधन का विश्वस्तरीय शोध केंद्र बन सकता है।

प्राचीन ग्रंथों में आज भी मांडू की अद्भुत जल संरचनाओं का उल्लेख देखने को मिल रहा है

कई प्राचीन ग्रंथों और बड़े इतिहासकारों ने मांडू की अद्भुत जल संरचनाओं का उल्लेख अपने ग्रंथों में किया है। राजा भोज देव ने अपने ग्रंथ श्रृंगार मंजरी में मांडू के जलस्रोतों के विषय में लिखा है। प्रसिद्ध किताब सिटी आफ जाय के लेखक जीएस यजदानी ने अपनी किताब में वाटर चैनल्स के वैज्ञानिक परीक्षण के बाद लिखा है कि मांडू की जल संरचनाएं अद्भुत हैं। डाउन टू अर्थ मैगजीन में मांडू के जहाज महल में बनी जल संरचनाओं को लेकर विशेष लेख हैं, जबकि इतिहासकार लुवर्ड ने जल संरचनाओं को बेमिसाल बताते हुए उस समय की इंजीनियरिंग की तारीफ की है। जहांगीर ने जहांगीरनामा में नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर में बनी जल संरचनाओं और प्राकृतिक सौंदर्य का उल्लेख किया है, तो अकबर ने अकबरनामा में मांडू के जल प्रबंधन को लेकर प्रशंसा की है।

मांडू के वरिष्ठ गाइड विश्वनाथ तिवारी ने बताया कि ,मांडू का मध्य प्रदेश और भारत के इतिहास से परिचय पुराना है। मध्य प्रदेश में पहाड़ी की चोटी पर बसा यह छोटा शहर, जिसकी जड़ें 8वीं शताब्दी ई. में परमार राजवंश से ताल्लुक रखती हैं। हालांकि, शहर के इतिहास के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, जो ख़ासियत इसे दिलचस्प बनाती है वह है प्राचीन जल संरक्षण प्रणालियां। मांडू में उस समय इस्तेमाल की जाने वाली जल संरक्षण तकनीकें आज भी शहर में रहने वाले लोगों के काम आ रही हैं। आईये जानते हैं किस प्रकार मांडू में किस प्रकार एक बेहतरीन एवं स्ट्रेटेजिक तरीक से जहाज़ महल के माध्यम से पानी को संरक्षित किया गया।
विश्व जल दिवस का महत्त्व
पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राणियों की उत्त्पत्ति जल से ही हुई है. अन्य ग्रहों पर भी वैज्ञानिकों द्वारा पानी की खोज को प्राथमिकता दी गयी है. ‘जल ही जीवन है’ यह कथन सत्य है क्यूंकि पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. अधिकांश संस्कृतियों का विकास भी नदी किनारे हुआ है. पृथ्वी का 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है शेष भाग पर मानव ,जीव जंतु ,जंगल ,मैदान पठार या पर्वत आदि मौजूद हैं। हर प्राणी जल पर निर्भरता रखता है लेकिन यह भी सत्य है की जल का अनावश्यक उपयोग भी हो रहा है। जनसँख्या विस्तार और औद्योगिकीकरण के कारण पानी की खपत में इजाफा हुआ है।

रिपोर्टर : रवीन्द्र सिसोदिया  

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