इस तरह करेंगे तर्पण , तभी मिलेगा पितरों का आर्शीवाद
पितरों की आत्म तृप्ति के लिए जो भी कर्म श्रद्धा से किया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है. श्राद्ध का तात्पर्य श्रद्धा से है.. श्राद्ध पितरों की तिथियों के अनुसार किया जाता है. शास्त्रो में पितृ पक्ष का समय अपने आप में बेहद अहम माना गया है.... इस दौरान लोग अपने पूर्वजों के नाम से तर्पण करते हैं और दान-पुण्य करते हैं... हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू होगा.... ऐसा माना जाता है कि इस दौरान जो लोग पिंडदान करते हैं, उन्हें पितृ दोष से छुटकारा मिलता है... साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती...लेकिन ऐसे समय में कई नियमों का पालन किया जाना जरूरी है .. ऐसे में चलिए आपको बतातें हैं कि आखिर तर्पण क्या होता है ...और तर्पन में कौन से नियमों का पालन करना चाहिए ....
शास्त्रों में कहा गया है कि पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है,उसके सारे काम बन जाते हैं और घर परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में उन्नति होती है। साथ ही कार्य, व्यापार, शिक्षा अथवा वंश वृद्धि में आ रही रुकावटें भी दूर होती हैं। इसीलिए पितरों को प्रसन्न करने के लिए किए जाने वाले श्राद्ध को शास्त्रों में पितृयज्ञ कहा गया है। पितरों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध को लेकर कुछ खास नियम बताए गए हैं, जिनका पालन किया जाना जरूरी है..जैसे कि तर्पन के भी अपने अलग नियम है ..जिनका पालन करके कि श्राद्ध पूरी होती है ... सबसे पहले तो जानिए इसकी विधि -
- जिस दिन आपके घर श्राद्ध तिथि हो, उस दिन सूर्योदय से लेकर दिन के 12 बजे तक ही श्राद्ध कर दें
- इसके पहले ही ब्राह्मण से तर्पण आदि करा लिए जाए
- सुबह स्नान के बाद देव स्थान और पितृ स्थान को गंगा जल से पवित्र करना चाहिए
- घर की महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं
- जो श्राद्ध के अधिकारी व्यक्ति हैं, जैसे श्रेष्ठ ब्राह्मण या कुल के अधिकारी, जो दामाद, भतीजा आदि हो सकते हैं, उन्हें न्योता देकर बुलाएं
- इस दिन निमंत्रित ब्राह्मण के पैर धोने चाहिए ..
- अभिमुख होकर तिल और जल लेकर पितृ-तीर्थ से संकल्प करें
- इसके बाद भोजन वाली अपवा पत्ते पर ब्राह्मण के लिए भोजन परोसें
- प्रसन्नचित होकर भोजन परोसें
- भोजन के बाद यथाशक्ति दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें
- गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी और नमक का दान करें
इसके अलावा कुछ और भी बातें हैं , जिनका ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है ...जैसे -
- ब्राह्मण भोजन से पहले पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौवे, देवता और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें।
- श्राद्ध तिथि वाले दिन तेल लगाने, दूसरे का अन्न खाने और स्त्री प्रसंग से परहेज करें
- श्राद्ध में राजमा, मसूर, अरहर, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लौकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज- लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, कैथ, महुआ, चना ये वस्तुएं वर्जित है
देखा जाए तो हिंदू धर्म में श्राद्ध और तर्पण को अत्यधिक महत्व दिया गया है. यह प्रक्रिया पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है. शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध और तर्पण से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनकी कृपा से परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि आती है. पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान बड़ी संख्या में किया जाता है.
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