श्री हरि के साथ – साथ संतान का सुख देती है ये एकादशी , जानें कल कैसे करें पुत्रदा एकादशी का व्रत , साथ ही जानें महत्व
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हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है. प्रत्येक महीने में दो बार एकादशी तिथि होती है पहली कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में. इस प्रकार पूरे साल में 24 एकादशी तिथियां होती हैं जिनका अपना अलग महत्व है. जिस प्रकार सभी एकादशी तिथियों का अलग मह्त्व बताया गया है उसी तरह पौष महीने की एकादशी तिथि का भी अलग महत्व बताया गया है.
पौष महीने में पड़ने वाली एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है और पुत्र प्राप्ति की इच्छा और संतान की रक्षा के लिए यह एकादशी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. पुत्रदा एकादशी साल में दो बार होती है. पहली पौष माह में और दूसरी सावन माह में. आइए अयोध्या के पंडित राधे शरण शास्त्री जी से जानें इस साल पौष महीने की एकादशी कब मनाई जाएगी और इसका क्या महत्व है.इस साल पौष महीने में एकादशी तिथि 13 जनवरी गुरूवार को मनाई जाएगी.
एकादशी तिथि आरंभ- 12 जनवरी, बुधवार, सायं 04: 49 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त-13 जनवरी, गुरुवार सायं 07: 32 मिनट तक
चूंकि उदया तिथि के अनुसार यह व्रत 13 जनवरी को रखा जाएगा इसलिए इसी दिन व्रत और पूजन फलदायी होगा. इस व्रत का पारण 14 जनवरी, बुधवार को किया जाएगा.
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय में भद्रावती राज्य का राजा सुकेतुमान था. उसका विवाह शैव्या नाम की राजकुमारी से हुआ था. उसके राज्य में हर प्रकार की सुख, सुविधा और वैभव था. उसकी प्रजा भी खुश थे. विवाह के काफी समय व्यतीत हो जाने के बाद भी सुकेतुमान की कोई संतान नहीं हुई. इस वजह से पति और पत्नी काफी दुखी और चिंतित रहते थे.
राजा सुकेतुमान को इस बात की चिंता थी कि उनका पुत्र नहीं है, तो फिर उनका पिंडदान कौन करेगा. इन सबसे राजा का मन इतना व्यथित हो गया कि वह खुद के ही प्राण लेने की सोचने लगा. हालांकि उसने ऐसा कदम नहीं उठाया. राजकाज से भी उसका मन उचट गया. ऐसे में वह एक दिन वन की ओर प्रस्थान कर गया.
राजा चलते चलते एक तालाब के किनारे पहुंच गया. वह दुखी मन से वहां बैठा हुआ था. तभी उसे कुछ दूरी पर एक आश्रम दिखाई दिया. वह उस आश्रम में गया. वहां उसने सभी ऋषियों को प्रणाम किया. तब ऋषियों ने उससे इस वन में आने का कारण पूछा. तब राजा ने अपने दुख का कारण बताया. ऋषि ने राजा सुकेतुमान से कहा कि संतान प्राप्ति के लिए उनको पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत विधिपूर्वक रखना होगा. ऋषि ने पुत्रदा एकादशी व्रत की महिमा का वर्णन किया.
अपनी समस्या का हल पाकर राजा वहां से खुश होकर वापस अपने महल में आ गया. फिर पुत्रदा एकादशी का व्रत आने पर राजा और पत्नी ने व्रत रखा और विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा की. पुत्रदा एकादशी के व्रत नियमों का पालन किया. इसके फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं और फिर राजा को एक पुत्र प्राप्त हुआ. इस प्रकार से जो भी पुत्रदा एकादशी का व्रत रखता है, उसे पुत्र की प्राप्ति होती है
व्रत व पूजा विधि
एकादशी व्रत की सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लें और जल में गंगाजल डालकर स्नान करें. मन में प्रभु का नाम जपते रहें. इसके बाद पूजा के स्थान की सफाई करें. इसके बाद नारायण की प्रतिमा को धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, फूल माला और नैवेद्य अर्पित करें. पंचामृत और तुलसी अर्पित करें. इसके बाद नारायण के मंत्रों का जाप करें. इसके अलावा वैकुंठ एकादशी व्रत कथा पढ़ें. आखिर में आरती करें. पूरे दिन उपवास रखें. रात में फलाहार करें और जागरण करके भगवान का भजन करें. द्वादशी के दिन स्नान करने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा दें. इसके बाद व्रत का पारण करें.
व्रत के नियम
1- इस व्रत के नियम एकादशी से एक शाम पहले से लागू हो जाते हैं. यदि आप 13 जनवरी का व्रत रखने के बारे में सोच रहे हैं तो आपको 12 जनवरी को सूर्यास्त से पूर्व सात्विक भोजन करना है.
2- व्रत के नियमानुसार द्वादशी तक ब्रह्मचर्य का पालन करना है.
3- एकादशी से पहले की रात में जमीन पर बिस्तर लगाकर सोएं.
4- एकादशी की रात जागरण करके भगवान का ध्यान और भजन करें.
5- मन में किसी के लिए बुरे विचार न लाएं. किसी की चुगली न करें और न ही किसी निर्दोष को सताएं.
6- द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद अपना व्रत खोलें.
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