माघ मास का सबसे बड़ा पर्व आज , जाने क्यों अद्भुत है ‘माघ पूर्णिमा’

हिंदू धर्म के त्यौहार और पर्वों का एक सागर है जिसमें हजारों पौराणिक कथाओं की लहरें समाईं हैं .हर माह कोई का कोई पर्व जरूर होता है , और हर पर्व का अपना महत्व होता है .हिंदू कलैंडर के अनुसार महिने अलग होते हैं और हर माह का अपना अलग अस्तित्व और विशेषता होती है .ऐसा ही एक विशेष माह है माघ का महिना . हिंदू धर्म में माघ माह का विशेष महत्व है माघ माह हिंदू कलैंडर का 11वां महीना है. इस बार 18 जनवरी से माघ मास आरंभ हुआ था , जिसका समापन आज यानी 16 फरवरी को हो रहा है . धार्मिक मान्यता के अनुसार इस महीनें दान और स्नान करना चाहिए. माध शब्द का संबंध भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप माधव से है. आज माध माह का सबसे बड़ा पर्व माघ पूर्णिमा है . इसे माघी पूर्णिमा भी कहते हैं.माघ पूर्णिमा के दिन नदी स्नान एवं दान का महत्व है. इस दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा करते हैं और कथा का पाठ होता है. सत्यनारायण भगवान के आशीष से घर में खुशहाली और समृद्धि आती है.पूर्णिमा तिथि को धन एवं वैभव की देव माता लक्ष्मी की भी पूजा करने का विधान है. इस दिन चंद्रमा के दोषों को दूर करने के लिए ज्योतिष उपाय किए जाते हैं. आज माघ पूर्णिमा के अवसर पर आप माता लक्ष्मी को प्रसन्न कर धन एवं वैभव प्राप्त कर सकते हैं. इसके लिए आपको बस एक काम करना चाहिए. माता लक्ष्मी की पूजा के समय श्रीसूक्त का पाठ करें.

माघ पूर्णिमा का अलग महत्व यूं ही नहीं बन गया .इसके पीछे इस पर्व की अद्भुद पौराणिक कथा समाहित है  तो चलिए आपको बताते हैं  कि क्या है माघ पूर्णिमा की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा -पौराणिक कथा के अनुसार कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहता था. ब्राह्मण और भिक्षा मांग कर अपना जीवन निर्वाह करता था. ब्राह्मण की पत्नी को कोई संतान नहीं थी. एक दिन उसकी पत्नी भिक्षा मांगने के लिए नगर में गई. लेकिन नगर वासियों ने बांझ कह कर उसे भिक्षा नहीं दिया. उसी समय किसी ने उसे 16 दिन तक मां काली की पूजा करने की सलाह दी. यह सुनकर ब्राह्मणी ने भक्ति पूर्वक मां काली की पूजा आराधना करने लगी..16 दिन बाद मां काली प्रसन्न होकर प्रकट हुई और उन्होंने ब्राह्मणी को गर्भवती होने का वरदान दिया और अपने सामर्थ के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को कम से कम 32 दीपक जलाने को कहा. एक दिन ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए आम के पेड़ से कच्चा फल तोड़ कर दिया. तब उसकी पत्नी ने उस फल को लेकर मां काली की पूजा की.16 दिन बाद मां काली प्रसन्न होकर प्रकट हुई और उन्होंने ब्राह्मणी को गर्भवती होने का वरदान दिया और अपने सामर्थ के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को कम से कम 32 दीपक जलाने को कहा. एक दिन ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए आम के पेड़ से कच्चा फल तोड़ कर दिया. तब उसकी पत्नी ने उस फल को लेकर मां काली की पूजा की.माता के कहे अनुसार वह प्रत्येक पूर्णिमा को मां काली प्रतिमा के सामने दीपक जलाती रही. माता मां काली की कृपा से उसके घर में एक सुंदर पुत्र ने जन्म लिया. उसने अपने पुत्र का नाम देवदास रखा. जब देवदास बड़ा हो गया, तो वह अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी चला गया. काफी में देवदास के साथ ऐसी घटना घटी जिसके कारण देवदास का विवाह धोखे से हो गया. चुकि देवदास की अल्पायु थी, इसलिए विवाह के कुछ दिन बाद ही काल उसका प्राण लेने के लिए आ गए. लेकिन ब्राम्हण दंपति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था, इस प्रभाव से काल देवदास का प्राण नहीं ले पाएं. तभी से पूर्णिमा के दिन व्रत करने की प्रथा शुरू हो गई. ऐसी मान्यता है, कि पूर्णिमा का व्रत सभी मनोकामना को पूर्ण करने के साथ-साथ जीवन के संकटों को दूर करता हैं. 

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