मिलेगी भय से मुक्ति , आज कालाष्टमी पर करें काल भैरव को नमन

हिंदू धर्म के अनुसार हर माह ऐसे बहुत से पर्व और त्यौहार आते है जिसका पौराणिक कथाओं में विस्तृत वर्णन है. हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत रखते हैं. आज फाल्गुन माह का कालाष्टमी व्रत है. इस दिन भगवान शिव के अवतार काल भैरव की पूजा की जाती है . काल भैरव का अस्तित्व धर्म के आधार पर कितना तीव्र है ये तो सभी जानते हैं. आज कालाष्टमी का पर्व है .कहते है कि कालाष्टमी व्रत बहुत फलदायी माना जाता है. पूरी श्रद्धा से भगवान भैरव की आराधना करने से रोगों से मुक्ति मिलती है. हर कार्य में सफलता और सुख, शांति की प्राप्ति होती है. भगवान भैरव की उपासना से भय से मुक्ति मिलती है. शत्रुओं से छुटकारा मिलता है.इस दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती और भगवान श्रीगणेश की पूजा-अर्चना अवश्य करें.

पौराणिक कथाओं की माने तो इस दिन शिव जी ने कालभैरव का रौद्र रूप धारण किया था. इसलिए इस दिन कालभैरव की पूजा अर्चना की जाती है. कालाष्टमी को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. वह श्रद्धालु जो भैरव देवता को अपना इष्टदेव मानते हैं. वह इस दिन उपवास रखते हैं. कालाष्टमी का व्रत सप्तमी तिथि से ही प्रारंभ हो जाता है. श्रद्धालुओं का मानना है कि कालभैरव की आराधना करके हमारे सभी कष्ट मिट जाते हैं. और काल भैरव महाराज हमपर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं. आपको बता दें कि कालाष्टमी के दिन ही महाराज कालभैरव का जन्म हुआ था.

धार्मिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार अष्टमी तिथि रात्रि काल में ज़्यादा प्रभावशाली होती है. इसीलिए सप्तमी तिथि से ही व्रत प्रारम्भ किया जाता है. कालभैरव को साक्षात, काल का रूप माना गया है. और यह देखने में इतने भयानक थे कि काल को भी इन्हें देख कर डर लगता था. एक बार भगवान शिव ने काल भैरव को ब्रह्मा जी पर शासन कर सम्पूर्ण संसार पर विजय प्राप्त करने का आदेश दे दिया था. क्योंकि ब्रह्मा जी और विष्णु जी के मध्य विवाद चल रहा था व वह दोनों शिव जी को तुच्छ साबित करने पर तुले थे. और यह आदेश मिलते ही कालभैरव ने ब्रह्मा जी का पांचवा सिर धड़ से अलग कर दिया था. इस घटना के बाद ब्रह्मा जी व विष्णु जी दोनों ही भगवान शिव की शरण में आए. भगवान शिव ने दोनों को माफ़ करते हुए. कालभैरव से कहा कि आज से लोग आपको पापभक्षण के नाम से भी जानेंगे. और शिव जी ने अपनी नगरी अर्थात वाराणसी का उन्हें कोतवाल भी बना दिया. इसलिए उन्हें काशी कोतवाल के काम से भी जाना जाता है. आप सभी को कालाष्टमी का व्रत सम्पूर्ण विधि विधान के साथ रखना चाहिए. और कालभैरव महाराज की आराधना करनी चाहिए.

(इस लेख की जानकारियां कथाओं के आधार पर एकत्र की गई हैं)

 

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