होली से पहले पड़ती है ये खास एकादशी , धर्म ग्रंथों में है खास महत्व

हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत महत्व है , प्रत्येक एकादशी  की एक खास परंपरा होती है . पंचांग के मुताबिक हर हिंदू माह में दो एकादशी व्रत होती है और हर एकादशी व्रत पर पूरे विधि-विधान के साथ व्रत करने से अलग-अलग फल की प्राप्ति होती है। 14 मार्च को आमलकी एकादशी व्रत है और धर्म ग्रंथों में आमलकी एकादशी का भी विशेष महत्व दर्शाया गया है.. आमलकी एकादशी व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है..

आमलकी एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है. मान्यता है कि आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है आमलकी एकादशी को कुछ लोग आंवला एकादशी या आमली ग्यारस भी कहते हैं.आमलकी एकादशी को रंगभरी एकदशी भी कहते हैं.यह अकेली ऐसी एकादशी है जिसका भगवान विष्णु के अलावा भगवान शंकर से भी संबंध है.रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विशेष पूजा बाबा विश्वानाथ की नगरी वाराणसी में होती है.रंगभरी एकादशी के पावन पर्व पर भगवान शिव के गण उनपर और जनता पर जमकर अबीर-गुलाल उड़ाते हैं.आंवले के पूजन के कारण इस एकादशी को आंवला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.इस बार आंवला एकादशी 14 मार्च को है.आइए जानते हैं  यहां आमलकी एकादशी के मुहूर्त पूजा विधि और कथा के बारे में-

आमलकी एकादशी तिथि -

एकादशी तिथि आरंभ13 मार्च, रविवार प्रातः 10: 21 मिनट पर

एकादशी तिथि समाप्त- 14 मार्च, सोमवार दोपहर 12:05 मिनट पर

क्या है व्रत कथा-

पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए थे,एक बार ब्रह्मा जी ने स्वयं को जानने के लिए परब्रह्म की तपस्या करनी आरंभ कर दी, उनकी  तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हो गए। श्री विष्णु को देखते ही ब्रह्मा जी के नेत्रों से अश्रुओं की धारा निकल पड़ी, कहते हैं आंसू  विष्णु जी के चरणों पर गिरने के बाद आंवले के पेड़ में तब्दील हो गए थे, भगवान विष्णु ने कहा कि आज से ये वृक्ष और इसका फल मुझे अत्यंत प्रिय है और जो भी भक्त आमलकी एकादशी पर इस वृक्ष की पूजा विधिवत तरीके से करेगा, उसके सारे पाप कट जाएंगे और वो मोक्ष की ओर अग्रसर होगा, तभी से आमलकी एकादशी का व्रत किया जाता है.

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