जानिए मोक्षदा एकादशी व्रत के बारे मे , और क्या है इसके पीछे की कहानी

इस साल मोक्षदा एकादशी व्रत 03 दिसंबर दिन शनिवार को है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं. ऐसी मान्यता है कि पूजा के समय मोक्षदा एकादशी व्रत कथा का पाठ करना या श्रवण करना फलदायी होता है. तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ कृष्ण कृमार भार्गव बताते हैं कि युधिष्ठिर ने एक बार भगवान श्रीकृष्ण से मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के बारे में बताने को कहा. तब श्रीकृष्ण ने कहा कि यह व्रत मोक्षदा एकादशी व्रत के नाम से लोकप्रिय है. इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. तुम मोक्षदा एकादशी व्रत कथा को सुनो.

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा- 
पौराणिक कथा के अनुसार, गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा का शासन था. एक दिन वह सपने में देखा कि उसके पिता नरक में हैं और कष्ट भोग रहे हैं. सुबह होते ही उसने अपने दरबार में विद्वानों को बुलाया और उनसे अपने स्वप्न के बारे में बताया.राजा ने बताया कि उसके पिता ने कहा कि वे नरक में पड़े हुए हैं. वे यहां पर नाना प्रकार के कष्ट सहन कर रहे हैं. तुम नरक के कष्टों से मुझे मुक्ति दिलाओ. राजा ने कहा कि उसने जब से यह स्वप्न देखा है तब से बड़ा ही परेशान और चिंति​त है.राजा ने सभी विद्वानों से कहा कि आप सभी इस समस्या का कोई उपाय बताएं, जिससे वह अपने पिता को नरक के कष्टों से मुक्ति दिला सके. यदि पुत्र अपने पिता को ऐसी स्थिति से मुक्ति नहीं दिला सकता है तो फिर उसका जीवन व्यर्थ है. एक उत्तम पुत्र ही अपने पूर्वजों का उद्धार कर सकता है. राजा की बात सुनने के बाद सभी विद्वानों ने कहा कि यहां से कुछ दूर पर ही पर्वत ऋषि का आश्रम है. वे त्रिकालदर्शी हैं. उनके पास इस समस्या का समाधान अवश्य ही होगा. राजा अगले ​दिन पर्वत ऋषि के आश्रम में पहुंचे. उन्होंने प्रणाम किया तो पर्वत ऋषि ने आने का कारण पूछा. राजा ने आसन ग्रहण करने के बाद अपनी सारी बात पर्वत ऋषि को बताई. तब पर्वत ऋषि ने अपने तपोबल से उनके पिता के पूरे जीवन को देख लिया. पर्वत ऋषि ने राजा से कहा कि उन्होंने तुम्हारे पिता के किए गए पाप को जान लिया है. पूर्वजन्म में उन्होंने काम के वशीभूत होकर एक पत्नी को रति दी, लेकिन सौत के कहने पर दूसरी पत्नी को ऋतुदान नहीं दिया. उस पाप कर्म की वजह से वे नरक के दुख भोग रहे हैं.
इस पर राजा ने इससे मुक्ति का उपाय पूछा. तब पर्वत ऋषि ने कहा कि तुम मोक्षदा एकादशी व्रत को विधिपूर्वक करो और उसके पुण्य फल को अपने पिता के नाम से संकल्प कर दो. इससे तुम्हारे पिता नरक से मुक्त हो जाएंगे. जब मोक्षदा एकादशी आई तो राजा ने विधिपूर्वक व्रत और पूजन किया. फिर बताए अनुसार उसके पुण्य फल को पिता के नाम से संकल्प करा दिया.

उस पुण्य फल के प्रभाव से वे मुक्त हो गए. उन्होंने अपने पुत्र से कहा कि तुम्हारा कल्याण हो. इसके बाद वे स्वर्ग चले गए. जो भी इस व्रत को करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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