आज मनाये गीता जयंती .. और जाने सफलता को पाने के पांच मूल मंत्र

आज 03 दिसंबर दिन शनिवार को गीता जयंती है. हर साल मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी तिथि को गीता जयंती मनाई जाती है. इस तिथि को मोक्षदा एकादशी भी होती है. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट बताते हैं कि द्वापर युग में इस तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के प्रारंभ के समय अर्जुन को गीता के उपदेश दिए थे. भगवान श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप के दर्शन और गीता के उपदेशों से अर्जुन को सफल जीवन का मंत्र प्राप्त हुआ और वे फिर सिर्फ कर्म के प्रति अग्रसर हुए. गीता के उन उपदेशों से अर्जुन का ही नहीं, पूरे संसार का मार्गदर्शन हो रहा है. यदि आज के समय में आप भी गीता के उपदेशों को अपने जीवन में आत्मसात करते हैं तो आपको सफलता प्राप्त होगी. आइए जानते हैं गीता के उपदेश के बारे में  .... 
 
फलता प्रदान करने वाले गीता के उपदेश-
1. मन की दुर्बलता का त्याग
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि जो व्यक्ति मन की दुर्बलता त्याग करके अपना कर्म करता है, वही सफलता को प्राप्त करता है. मन के अंदर पैदा होने वाले संशय को त्यागना चाहिए. संदेह की स्थिति में रहकर सफलता नहीं प्राप्त की जा सकती है.
 
2. कर्म पर ही मनुष्य का अधिकार
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि हे पा​र्थ! मनुष्य का कर्म करने में ही ​अधिकार है. उसे केवल कर्म करना चाहिए. कर्म के फल पर मनुष्य का कोई अधिकार नहीं है. इस वजह से फल की चिंता किए बिना व्यक्ति को सच्चे मन से कर्म करना चाहिए
 
3. मन पर नियंत्रण
जो व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण स्थापित कर लेता है और उसके लिए जय-पराजय, लाभ-हानि, सुख-दुख सब समान होता है, वह व्यक्ति जीवन में सफल हो जाता है क्योंकि उसने अपने मन को वश में कर लिया है.
 
4. क्रोध न करें
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि क्रोध करने से अत्यंत ही मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है. इससे अपने ही मन में भ्रम पैदा होता है. इसके कारण बुद्धि का नाश हो जाता है. जब बुद्धि खराब हो जाती है तो व्यक्ति का सर्वनाश हो जाता है. इस वजह से व्यक्ति को क्रोध नहीं करना चाहिए.
 
5. शांति को करें प्राप्त
श्रीकृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति संपूर्ण कामनाओं को त्याग करके अहंकारहित और ममतारहित हो जाता है. उसे ही शांत प्राप्त होती है. व्यक्ति को काम, लोभ, मोह और मद का त्याग करना चाहिए.
 
ऐसे समय में प्रकट होते हैं भगवान
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि संसार में जब-जब धर्म की हानि होती है, अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब वे साकार रूप में लोगों के समक्ष प्रकट होते हैं. सज्जनों का उद्धार करने, पापियों का विनाश करने और धर्म की स्थापना करने के लिए वे युग-युग में प्रकट होते हैं..

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