कब है पुत्रदा एकादशी व्रत, जानें शुभ मुहूर्त एवं महत्व
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सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं तथा भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष दो पुत्रदा एकादशी मनाई जाती हैं। पहली पुत्रदा एकादशी पौष माह में मनाई जाती है वहीं दूसरी पुत्रदा एकादशी श्रावण शुक्ल पक्ष में पड़ती है। इस वर्ष श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी 18 अगस्त बुधवार के दिन पड़ रही है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन लोग संतान प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं तथा भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करते हैं।
इस दिन विधि विधान से की गई उपासना मनवांछित फल देने वाली होती है. जो श्रद्धालु एकादशी व्रत करते हैं, उन्हें एक दिन पहले ही अर्थात दशमी तिथि की रात से ही व्रत का नियम मानना शुरू कर देना चाहिए. दशमी की शाम सूर्य ढलने के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात के वक्त श्रीहरि विष्णुजी का ध्यान कर सोएं. अगली सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निपटकर स्नान करें, गंगाजल है तो पानी में उसे मिलाकर नहाना चाहिए और स्वच्छ कपड़े पहनें. पूरे दिन हरि का ध्यान रकें.
पूजा के लिए विष्णुजी की फोटो के सामने दीप जलाकर व्रत संकल्प लें और विधि विधान से कलश स्थापना करें. कलश को लाल कपड़े से बांधकर पूजा करें. श्रीहरि की प्रतिमा रखकर स्नानादि कर शुद्ध और नया वस्त्र पहनाएं. धूप-दीप आदि से पूजा-अर्चना और आरती करें. नैवेद्य और फलों का भोग लगाकर प्रसाद बांटें. श्रीहरि विष्णु को सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि अर्पित करें.
एकादशी की पूरी रात भजन-कीर्तन करना चाहिए
पुत्रदा एकादशी व्रत में पूरे दिन निराहार रहकर शाम को कथा आदि सुनने के बाद फलाहार करना चाहिए. दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन और दान-दक्षिणा आदि करने का प्रावधान है. इसके बाद खुद पारण कर खाना खाना चाहिए. इस दिन दीपदान का बहुत महत्व है, ऐसे में यह करना न भूलें, इस व्रत के पूर्ण होने से मनुष्य तपस्वी, विद्वान, पुत्रवान और लक्ष्मीवान बनता है.
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