निर्जला एकादशी व्रत का महत्व ,जानें शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म में इस एकादशी तिथि का बड़ा ही महत्व होता है. कहते है  निर्जला एकादशी का व्रत करने से सालभर की एकादशी व्रत करने के बराबर फल मिलता है. 

निर्जला एकादशी का व्रत सबसे पवित्र व्रतों में से एक माना जाता है यह व्रत  21 जून, दिन सोमवार को ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी व्रत रखा जाएगा. निर्जला एकादशी व्रत का विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है. निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है.

महाभारत काल में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एकादशी व्रत के महामात्य के बारे में विस्तार से बताया था. भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर ही युधिष्ठिर ने एकादशी का व्रत विधि पूर्वक पूर्ण किया था. एकादशी का व्रत सभी पापों से मुक्ति प्रदान करता है. एकादशी व्रत को मोक्ष प्रदान करने वाला व्रत माना गया है.

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व

निर्जला एकादशी का महत्व सभी व्रतों में विशेष है. निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है. इस व्रत में जल का त्याग किया जाता है. इसी कारण इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है. इस व्रत को जो भी विधि पूर्वक पूर्ण करता है, उसके जीवन में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है.

निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त

 निर्जला एकादशी तिथि: 21 जून 2021
एकादशी तिथि प्रारंभ:  20 जून, रविवार को शाम 4 बजकर 21 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समापन: 21 जून, सोमवार को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट तक

एकादशी व्रत में पारण का महत्व

एकादशी व्रत के समापन को पारण कहा जाता है. एकादशी व्रत का पारण व्रत के अगले दिन किया जाता है. व्रत का पारण सूर्योदय के बाद करना चाहिए. मान्यता के अनुसार व्रत का पारण द्वादशी की तिथि समाप्त होने से पहले करना ही उत्तम माना गया है. द्वादशी की तिथि यदि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाए तो व्रत का पारण सूर्योदय के बाद करना चाहिए.

एकादशी व्रत का पारण समय: 22 जून, सोमवार को सुबह 5 बजकर 13 मिनट से 8 बजकर 1 मिनट तक

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