इंकलाबी शायर फैज़ अहमद फैज़ की नज्म दिन बना देंगी

WRITTEN BY - ARPIT SINGH SISODIYA 


फैज़ अहमद फैज़ का नाम भारत में अक्सर चर्चाओं में रहता हैं. दरअसल ये अपनी शायरी की वजह से ये काफ़ी मशहूर हैं. इनकी एक इंक़लाबी नज़्म 'बोल के लव आज़ाद हैं तेरे' भारतीय राजनीति का एक हिस्सा बन गया हैं. इनकी कई शायरी कविताएं आंदोलन के समय चर्चा बटोरती हैं ....  खास कर छात्र आंदोलनों में इनकी शायरियों को खूब सुनाया जाता हैय फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ पाकिस्तान के मशहूर वकील, पत्रकार और शायर थे, जिन्होंने आधुनिक उर्दू शायरी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. पाकिस्तान सरकार ने उनको देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान-ए-इम्तियाज़’से नवाज़ा गया था.. यहां तक कि साल 2011 को फ़ैज़ का वर्ष घोषित किया गया. बता दें कि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज्म, शायरी और गजलों में बगावती सुर दिखते हैं. इससे पहले फ़ैज़ की एक नज्म 'हम देखेंगे' को लेकर आईआईटी कानपुर में बवाल हुआ था. साल 1979 में फैज़ द्वारा पाकिस्तान के सैन्य शासन और सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक़ के खिलाफ हम देखेंगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे नज़्म लिखी थी. फ़ैज़ की ये नज़्म तबसे तमाम विरोध प्रदर्शनों में गाई जाती रही है. तो चलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं  इंक़लाबी शायर फैज़ अहमद फैज़ की दो खास नज्में - 

1- हम देखेंगे -

लाज़िम है कि हम भी देखेंगे 
वो दिन कि जिस का वादा है 

जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है 
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ 

रूई की तरह उड़ जाएँगे 
हम महकूमों के पाँव-तले 

जब धरती धड़-धड़ धड़केगी 
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर 

जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी 
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से 

सब बुत उठवाए जाएँगे 
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम 

मसनद पे बिठाए जाएँगे 
सब ताज उछाले जाएँगे 

सब तख़्त गिराए जाएँगे 
बस नाम रहेगा अल्लाह का 

जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी 
जो मंज़र भी है नाज़िर भी 

उट्ठेगा अनल-हक़ का नारा 
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो 

और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा 
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो 

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2 -'बोल की लव आज़ाद है तेरे'

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे 
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है 

तेरा सुत्वाँ जिस्म है तेरा 
बोल कि जाँ अब तक तेरी है 

देख कि आहन-गर की दुकाँ में 
तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन 

खुलने लगे क़ुफ़्लों के दहाने 
फैला हर इक ज़ंजीर का दामन 

बोल ये थोड़ा वक़्त बहुत है 
जिस्म ओ ज़बाँ की मौत से पहले 

बोल कि सच ज़िंदा है अब तक 
बोल जो कुछ कहना है कह ले 
                
                                       फैज़ अहमद फैज़

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