लोकतंत्र में एक बार फिर हुई 'परिवारवाद' की जीत

लोकतंत्र के महामुकाबले यानी लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और देश में तीसरी बार एनडीए की सरकार बनने जा रही है...और नरेंद्र मोदी भी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेंगे...लेकिन इसी बीच चुनाव प्रचार के दौरान के तमाम वाक्ये लोगों के जहन में अभी भी गूंज रहे हैं...उन्हीं में से एक था परिवारवाद...जी हां वहीं परिवारवाद या यूं कहे वंशवाद, ये अपने देश की राजनीति को दिन पर दिन खोखला करता जा रहा है...भारत की राजनीति में परिवारवाद इस कदर हावी है कि जनता भी मुद्दों और विकास से हटकर सिर्फ नाम पर ही वोट देती है..औऱ ऐसा इस बार के लोकसभा चुनाव में देखने को भी मिला...खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने इसके खिलाफ मुद्दा बनाने की कोशिश की...सबसे पहले अगर बात करें भारतीय राजनीति में आज परिवारवाद के सबसे बड़े प्रतीक बन चुके इटावा में सैफई के यादव परिवार यानी मुलायम सिंह यादव के परिवार की तो उनके परिवार के पांच सदस्य एक साथ लोकसभा चुनाव में दिखे...पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पांच सीटों पर इस चुनाव में यादव परिवार के सदस्य जीते हैं...इनमें खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कन्नौज से बाजी मारी है... उनकी पत्नी और मैनपुरी से सांसद रहीं डिंपल यादव ने फिर मुलायम सिंह यादव की परंपरागत मैनपुरी सीट जीत ली है... यूपी से पति-पत्नी दोनों ही सांसद बनकर सदन पहुंचे हैं...इनके अलावा सपा नेता और अखिलेश के चाचा रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव इस बार फिरोजाबाद से सांसद बनकर लोकसभा पहुंच गए हैं...वहीं शिवपाल यादव ने अपने बेटे आदित्य यादव के लिए बदायूं सीट छोड़ दी थी और अब उन्हें संसद तक पहुंचाने में कामयाब रहे हैं...रामगोपाल यादव खुद पहले से राज्यसभा के सदस्य हैं...वहीं अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव भी इसमें पीछे नहीं हैं...ऐसे में मुलायम परिवार के एक साथ छह सदस्य संसद पहुंच गए हैं और एक बार फिर ये साबित कर दिया कि राजनीति में परिवारवाद की कितनी ताकत है...तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को हम कैसे भूल सकते हैं जिसने इस वंशवाद की शुरूआत की...पहले जवाहर लाल नेहरू फिर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल और प्रियंका गांधी...कांग्रेस में तो वंशवाद सदियों से चला आ रहा है...यही कारण है कि कांग्रेस के किसी भी नेता को राजनीति की समझ हो या न हो उसे विरासत में सत्ता की कमान सौंप दी जाती है...जैसा कि इस बार के चुनाव में भी देखने को मिला... 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बारे में तो सबको पता ही है कि किस तरह से वह हमेशा परिवारवाद को लेकर विपक्षियों के निशाने पर रहे हैं... उन पर गांधी परिवार के नाम का सहारा लेकर राजनीति करने का आरोप लगता रहा है...वह इस बार वायनाड और रायबरेली दोनों सीटों से जीते हैं...ये दोनों ही सीटें गांधी परिवार की परंपरागत सीटें मानी जाती रही हैं...पिछले लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने रायबरेली से चुनाव जीता था, जो यूपी में कांग्रेस के खाते में आई इकलौती सीट थी...तो वहीं यूपी के बाद बिहार में भी परिवारवाद खूब चला और लालू प्रसाद ने अपनी दोनों बेटियों मीसा भारती और रोहिणी आचार्य को मैदान में उतारा...राजद के टिकट पर मीसा तो पाटलिपुत्र से जीत गईं पर उनकी बहन रोहिणी को सारण से हार का सामना करना पड़ा...हालांकि लालू के दोनों बेटे तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव पहले से अपने पिता की बदौलत राजनीति में हैं...लेकिन इस बार लालू ने अपनी बेटियों को चुनाव में उतार वंशवाद की इस परंपरा को और आगे बढ़ा दिया है...वो बेटी जिसे राजनीति का र भी नहीं पता...विदेश में पढ़ी-लिखी औऱ वहां रही मीसा भारती को भारत की राजनीति के बारे में कुछ नहीं पता, न ही यहां की जनता के दुख दर्द से वो वाकिफ है, लेकिन उसके बावजूद अपने पिता से उन्हें पाटलिपुत्र सीट विरासत में मिल गई...क्योंकि जनता ने उन्हें वोट सिर्फ लालू के नाम पर दिया, न कि उनके काम पर...तो वहीं महाराष्ट्र भी परिवारवाद से अछूता नहीं रहा...मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे ने मुंबई की कल्याण लोकसभा सीट से चुनाव जीता...शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले बारामती सीट से अपनी ही भाभी को हराकर लोकसभा पहुंची हैं...

हैरानी वाली बात तो ये है कि हमारी देश की जनता और मतदाताओं को क्या हो गया है, जो जनता मुद्दों और विकास को देखकर नेता को वोट देती थी आज वो सिर्फ बड़े नेता का नाम सुनकर और उसका चेहरा देखकर अपना बहुमूल्य मत खराब कर रही है...जिस अखिलेश यादव ने यूपी में मुख्यमंत्री रहते हुई कोई जनता के लिए कोई काम नहीं किया, प्रदेश में कोई विकास कार्य नहीं किया उस अखिलेश यादव को यूपी में इतनी भारी बहुमत से जीत मिल गई, वो सिर्फ इसलिए क्योंकि वो मुलायम सिंह यादव का बेटा है...तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस परिवार के शहजादे, और लाडले राहुल गांधी, जिन्हें सही ये बोलना तक नहीं आता, जनता के मुद्दों को उठाना नहीं आता वो कैसे देश का प्रतिनिधित्व करेंगे...कैसे जनता की रक्षा करेंगे....लेकिन उसी जनता ने सिर्फ गांधी परिवार के नाम पर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का सोच लिया...बिना ये सोच कि जिस देश ने इन 10 सालों में इतनी प्रगति की है, पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है, उस देश को नीचे गिरते 2 मिनट नहीं लगेंगे....जनता को इस पर काफी सोचने की जरूरत है..हमें अपने लिए एक ऐसे नेता का चुनाव करना है जो हमारे देश का सही प्रतिनिधित्व कर सके..उसे एक नई ऊंचाई कर लेकर जाए....और इसके लिए आपको चेहरे और नाम से हटकर काम और विकास को देखकर अपना किमती वोट देने की जरूरत है...

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