नेताजी खुरशी की आस में और जनता "अच्छे दिन" की तलाश में

✓ क्या करना चाहिए अच्छे दिन के लिए।

✓ पाकिस्तान से भी ज्यादा दामों में पेट्रोल भारत में क्यू?!

✓ पेट्रोल के दाम घटाके भी थोड़ी महंगाई कम हो सकती है

✓ क्या चुने हुवे नेता प्रजा हित में काम करेंगे या काम के समय मिले वोट की लिस्ट लेके बैठेंगे

✓ क्या टैलेंटेड युवाओं को सही जगह अपना टैलेंट युज करने का मोका मिलेगा

✓ क्या भ्रष्टाचार और कालाधन अभी भी याद हे।

✓ जब सच्चाई के साथ चलोगे तो अच्छाई अपने आप आएगी।

गुजरात :  चुनाव आया चला गया शपथ विधि हो गई । लेकिन जनता को जो आस हे वह तो धरी की धरी  ही रहती है। अगर आप सही मायनो में अपने देश को चाहते हो आपको देश नहीं बिकने देना है तो आपकी सोच ऐसी होनी चाहिए ओके हम सभी सुविधाएं लोगों में बराबर बांट सके। ज्यादा से ज्यादा लोगों को उनकी काबिलियत के हिसाब से काम दे। और देश के संसाधनों को बचाए रखें। लेकिन यहां तो उलटी गंगा बह रही है ऐसी करोड़ लोगों को राशन देकर गर्व से सीना ठोक के यह बात कही जा रही है।

अब अगर इसका दूसरा पहलू देखें तो जो पाकिस्तान है जो भुखमरी की कगार पर है जिसके पास कुछ नहीं है वह भी अपने देशवासियों को पेट्रोल और डीजल यहां से कम दामों में दे रहा है। अगर भुखमरी और गरीबी होने के बावजूद भी वहां की सरकार पेट्रोल और डीजल भारत से कम दामों में दे सकते हैं और फिर भी देश चल रहा है तो हमारे यहां क्या दिक्कत आ रही है?। अगर हम ग्लोबल पेट्रोल प्राइस के डाटा को एनालिसिस करें और इंडियन रूपी में देखे तो सबसे सस्ता पेट्रोल₹2.39 पैसे लीटर के दाम पर ईरान में मिल रहा है  पाकिस्तान में  इंडियन रूपी के मुताबिक पेट्रोल प्राइस ₹80.54 पैसे हैं । यह एक सार्वजनिक उत्तर है जो आप साइट पर जाकर चेक कर सकते हो और आप सबको पता है के इसमें कितना टैक्स लग रहा है।!? और साथ में सरकार को यह भी पता होना चाहिए की सिर्फ पेट्रोल और डीजल के दाम गिरने से महंगाई कुछ अंश तक काबू में आ  जाती है। तो क्या यह नई चुनी हुई सरकार की आखें खुलेगी और यह सोचेंगी के हम पिछले कई सालों से हमारी प्रजा को पेट्रोल और डीजल पाकिस्तान से भी ज्यादा दाम पे खरीदने के लिए मजबूर कर रहे है उसमे थोड़ी राहत दे देनी चाहिए।।

इससे आगे हम सोचे तो सही मायनों में अच्छे दिन का मतलब भयमुक्त सुशासन होना चाहिए चाहिए लेकिन यहां पर कदम कदम पर धर्म के नाम पर कुछ बोलने के नाम पर आगे पीछे करने के नाम पर हमें चला जा रहा है और नेताओं और पक्षोंके के भाषणों में भी यही चीज आ रही है इसमें बाकायदा सुधार करना होगा। सरकारों को यह समझना होगा कि यह देश धर्म के नाम पर टिका है लेकिन कर्मों के नाम पर ही चलेगा। अगर आप बेवजह धर्म के अंदर घुस जाओगे तो ना तो देश चला पाओगे और ना ही सुशासन ला पाओगे।

शपथ लेने के बाद सबको पता है की जवाब कोई भी एरिया का काम लेकर जा रहे हो तो ज्यादातर नेता और उसके चमचे खटक से इलेक्शन का डाटा निकलेंगे और बोलेंगे के हमें यहां से या आपके एरिया से इतने ही मत मिले हैं तो यह काम हम क्यों करें तो आपको देश के रहकर काम करना होगा। अगर आप भारतीय बनकर जिम्मेवारी का वहां करोगे तो आपको सही मायने में पता चलेगा कि हमारी प्रजा है वह कितनी दुखी है और किस वजह से हे।

जब पहलीबार आए तब सब से ज्यादा भाषण भ्रष्टाचार और कालाधन पे दिया गया था। लेकिन अब उसमे भी थोड़ी बांध छोड़ कर ली हे। साथ मै आ जाओ तो शिष्टाचार सामने रह कर करो तो भ्रष्टाचार।!? तो यहजो नेताओं को अपने और खिचके जोड़ने की होड़ है उसे खत्म करनी पड़ेगी वरना देश के बड़े बड़े पद बिक जाएंगे । वैसे भी जो पद के नेताओं इतने साल चुनाव के बाद सही को सही नही कह सकता हे वोह देश के लिए क्या भला कर शकेंगा और अगर करना ही है तो कम से कम हर माह में 1 भ्रष्टाचारी नेता को पकड़ेंगे एसी सपथ लेनी चाहिए।।

युवाओं भी आज सोचते है की
अगर चैन से मिलती है रोटी वतन में बैठकर खाने को तो कौन बेवकूफ़ होगा जो राजी होगा देश छोड़कर जाने को। हमारे यहां की युवा पेटी बहुत ज्यादा टैलेंटेड है लेकिन इन्हीं वजह से उसके टैलेंट का उपयोग हमारे देश में योग्य तरह से नहीं हो सकता है। और अब तो ज्यादातर परीक्षाएं भी शंका के दायरे में आ गई है साथ ही साथ ज्यादातर डिग्रियां भी शंका के दायरे में तो यह साफ जाहिर है की कोई भी चीज ऐसी बाकी नहीं रही इसमें गफला ना हो। अगर इसे बाहर निकलना है और इन युवाओं के लिए सोचना है तो योग्य युवाओं को और योग्य बुद्धि क्षमता को योग्य जगह कम पर लगाना चाहिए तो ही हमारे देश में सुशासन आएगा राम-राम करते हो अगर राम ने नल नील के जगह खुद ही सेतु बनाया होता तो!? क्या राम जी खुद हनुमान जी की जगह नहीं जा सकते थे?! लेकिन यह सारी चीज भगवान ने भी यहां आकर बताइ के जिसकी जहां जरूरत है उसको वैसे ही काम पर लगाओ तो वह अपना 100% लड़ाई के लिए देश के लिए या अपने प्रति जो भाव है उसके लिए समर्पित रहेगा। और उसे काम को देने वाले की मनसा पूरी नीति वान होनी चाहिए जो की राम प्रभु जी की थी। तो ऐसे ही अगर सरकार महंगाई कम करदे , भ्रष्टाचारी के खिलाफ आंदोलन छेड़ दे लेकिन शरुआत अपने से करे और युवाओं को सही स्टेज दे तो सुशासन और अच्छे दिन अभी भी दूर नही हे। लेकिन क्या यह सरकार की नीति और इच्छा शक्ति हे या नहीं वह समय बताएगा अभी तो जनता अच्छे दिन की आस में और नेता खुरशी की तलास में ही है।। लेकिन यह याद रखना के जब सच्चाई के साथ चलोगे तो अच्छाई अपने आप साथ आजाएगी यानी की सच से अच्छे दिन की आस पूरी हो सकती है।

चन्द्रकान्त  पुजारी

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