मन को जो भीगोदे वह बारिश किसको आनंदित नहीं करती

आई बरखा बहार, करें धरती का श्रृंगार
लेखक - राजकुमार बरूआ भोपाल 

"दस कूप समा वापी,दस वापी समो हद:
दस हद सम: पुत्रो, दस पुत्र समो दुम:"

बारिश, बरखा रानी, मेघा, के कई नाम हैं पर एक नाम जो आपको बचपन में लोटा देता है "मम-मम" बड़े मशहूर गज़लकार स्वर्गीय जगजीत सिंह जी कई गज़लों में से एक मशहूर गज़ल याद आती है,

"ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो 
भले छीन लो मुझ से से मेरी जवानी 
मगर मुझ को लौटा दो वो बचपन का सावन 
वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी"

हर मन को जो भीगोदे वह बारिश किसको आनंदित नहीं करती, बारिश में भीगना लगभग सबको ही अच्छा लगता है बारिश की बूंदे जब आपके शरीर पर पड़ती है तो एक ठंडे एहसास के साथ जो गुदगुदी पूरे बदन में होती है उसका आनंद शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता बारिश की बूंदे आपके शरीर पर गिरते हुए जो आपके मन को छू जाती है और आपके तन को ठंडा कर देती है उसका अनुभव भी अद्भुत है, बारिश में भीगने से जो खुशी आपको मिलती है उस खुशी के मिलने का भी एक वैज्ञानिक कारण है, बारिश के पानी में नहाने से एंडोर्फिन और सेरोटोनिन जैसे हैप्पी हार्मोन हमारे शरीर से निकलते हैं जिससे स्ट्रेस को दूर करने में मदद मिलती है,अमृत की बूंदो के साथ ही पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति होना शुरू हो जाती है चाहे वह किसी भी रूप में हो पर हम यहां बात कर रहे हैं पर्यावरण के बारे में, बारिश मानव जाति के लिए एक अति महत्वपूर्ण घटक है जिसके बिना मानव जाति का जीवित रहना असंभव है इसलिए जल की महत्वता अति महत्वपूर्ण है इसलिए सभी को जहां तक हो सके जल बचाने के प्रयास लगातार करते रहना चाहिए,
"जल ही जीवन हैं" 
बरसा हवा को ठंडा कर देती है जो पहले से ही सूर्य की किरणों से झूलस चुकी होती है तथा सूखे पत्तों और घास के मैदाने को पुनः नमी प्रदान करती है जिसके कारण सभी प्रकार के पेड़-पौधों को भरपूर जीने की स्वतंत्रता मिल जाती है, मनुष्य हर प्रकार से जल पर ही निर्भर है, मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही जब वह रहवासी होने लगा तो उसने हमेशा उस स्थान को चुना जहां पर जल आसानी से उपलब्ध रहा यही कारण है कि आप ने देखा होगा की मनुष्यों ने हमेशा नदियों और तालाब के पास ही धनी बस्ती बनाई है, कई जरूरी बातों में से एक बात जो अपने आप में प्रमुख है कृषि, किसानों के लिए तो बारिश का पानी समझो मां गंगा को धरती पर लाने वाले भागीरथ के वरदान समान हैं, पहले से की गई तैयारी के साथ ही किसान बारिश के मौसम में बीजों का रोपण कर अपनी फसलों की बुआई शुरू कर देता है, समय-समय पर बारिश के साथ-साथ ही फसलें बढ़ती है और किसान अपनी बढ़ती हुई फसल को देखकर ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करता है,और हम लोगों के लिए अनाज उत्पादन कर हमारे भोजन की व्यवस्था करता है इसलिए हमेशा हमें किसानों के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए और उनके लिए प्रार्थना करना चाहिए कि ईश्वर उनको हमेशा खुश रखे, सरकारों को भी किसानों के लिए कुछ विशेष योजनाएं हमेशा रखना चाहिए। पीने के पानी के लिए भी भारत की आदि से ज्यादा आबादी बारिश के जल पर ही निर्भर करती है, वर्षा ही वह मुख्य तरीका है जिसके माध्यम से आकाश में मौजूद पानी धरती पर आता है जहां वह हमारी झीलों और नदियों को भरता है भूमिगत जल स्रोतों को पूनर्भरित करता है तथा पौधों और जानवरों को प्रेय प्रदान करता है तो इस बारिश के साथ ही हम मनुष्य की एक जवाबदारी बढ़ जाती है और वह है "वृक्षारोपण" की, भोपाल के सुनील दुबे "वृक्ष मित्र" जिन्होंने अभी तक ढाई लाख के करीब पेड़ पौधों को लगाया है वह कहते हैं कि वृक्षारोपण के लिए सबसे उपयुक्त समय वर्षा ऋतु ही होती है जब हम लगभग हर प्रकार के वृक्षों को को लगा सकते हैं और उन्हें बढ़ाने के लिए जो सबसे जरूरी है पानी वह आसानी से मिल जाता है जिससे वृक्षारोपण करना आसान हो जाता है हां यह बात ध्यान देने योग्य कि उनका ख्याल फिर भी हमें रखना पड़ता है क्योंकि वृक्षों को दो बारिशों का पानी मिलने के बाद ही मजबूती मिलती हैं और फिर वह अपने आप से स्वतंत्र होकर खुद ही एक पेड़ की शक्ल ले लेते हैं, वृक्षमित्र बताते हैं कि इस मौसम में लगभग हर प्रकार के वृक्षों को लगाया जा सकता है कुछ वृक्षो को छोड़कर, जो आप अपने करीब की नर्सरी में जाकर जब पौधा लेंगे तो वहां पर उपलब्ध माली आपकी मदद कर सकता है, लेकिन जो सबसे जरूरी बात है कि हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने है जिससे हम अपनी आने वाली पीढियां को प्राकृतिक का सबसे अनमोल उपहार दे सकें, मनुष्य शायद हर वस्तु को खरीदने की शक्ति प्राप्त करना चाह रहा पर वह भूल रहा है कि उसका पूरा जीवन प्राकृति पर ही निर्भर है इसलिए मनुष्य को अपनी सीमाओं का उल्लंघन करने से पहले अपने आने वाली पीढियां के बारे में सोच लेना चाहिए, कोरोना काल में प्रकृति ने मानव को अपनी सीमाएं याद दिला दी शुद्ध ऑक्सीजन के लिए वह लाखों रुपए देने को भी तैयार था पर वह उसको उपलब्ध नहीं हो पा रही थी, वह पैसे देकर नहीं खरीद सकता यह भी उसको इस कोरोना काल में समझ में आ गया इसलिए पर्यावरण की रक्षा करना वृक्षों को लगाकर अपने कर्तव्य का पालन करना मनुष्य के लिए जरूरी तो है ही साथ ही उसकी आवश्यकता भी है,कई अध्ययनों से पता चला है कि शहरी क्षेत्रों में पेड़ों की मौजूदगी तनाव को कम करके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकती है - अधिक हरियाली वाले क्षेत्रों में रहने से तनाव हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर कम होता है। इसके अलावा, पेड़ और हरियाली वाले स्थान कम नकारात्मक विचारों, अवसाद के कम लक्षणों, बेहतर मूड (स्व-रिपोर्ट) और जीवन संतुष्टि में वृद्धि से जुड़े हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि डॉक्टर शहरी क्षेत्रों में कम अवसादरोधी दवाएँ लिखते हैं जहाँ पेड़ हैं! बारिश के मौसम में हमें कुछ सावधानियां रखना जरूरी हो जाता है क्योंकि इस समय आने वाला पानी अपने साथ कई प्रकार के जीवाणु और जंतु को लेकर आता है जिसके कारण पानी दूषित हो जाता है और मटमैला भी तो पानी के उपयोग से पहले हमें पानी को शुद्ध करना जरूरी है जिससे हमें डॉक्टर के पास जाने की जरूरत ना पड़े और भी कुछ सावधानियां रखते हुए हमें बारिश का आनंद  बचपन की तरह लेना चाहिए, बचपन के लिए हम आज भी अपना सब कुछ लुटाने को तैयार रहते हैं पर दोस्तों उम्र तो बढ़ते ही रहेगी चाहे मेरी  हो या आपकी, खुशी भी उम्र के साथ बढ़ते रहें इसके लिए हमें वृक्षों को अपना मित्र बनाकर रखना चाहिए और हर मौसम में खुश रहकर उसका आनंद लेते हुए अपने जीवन को जी भर के जीना चाहिए। वैसे भी बारिश के मौसम में पकौड़े चाय किसको नहीं पसंद,दोस्तों के साथ पकोड़े-चाय हो जाए तो कहना ही क्या,तो इस लिए हम सब मिलकर एक संकल्प लेते हैं कि इस वर्षा ऋतु में अधिक से अधिक वृक्षारोपण करके हम प्रकृति के द्वारा हमें दिए गए उपहार को उसको उसी रूप में लौटाकर उसके प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेंगे और वृक्षों की रक्षा कर एक सुंदर और शुद्ध वातावरण अपनी आने वाली पीढ़ियों को देंगे।

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