मेरा नारा, इंक़िलाब ओ इंक़िलाब ओ इंक़िलाब

जोश मलीहाबादी एक ऐसे शायर थे जिनकी ख्याति बहुत दूर तक फैली हुई थी. देश के आज़ादी से पहले ये भारत के ही बाशिंदा थे. इन्हें पंडित नेहरु का बहुत ही क़रीबी माना जाता था. लेकिन वो बटवारे के समय पाकिस्तान चले गये. वो तो चले गए थे लेकिन उनके अन्दर से लखनऊ का मलीहाबाद नहीं गया था. ये अपने समय के उर्दू शायरों में सबसे ऊर्ध पर मने जाते थे. इनका दर्जा बहुत ही ऊपर था ये फैज़ अहमद फैज़ से बुजुर्ग थे. जोश तो पाकिस्तान चले गये लेकिन उनकी शायरी भारत में ही रह गयी थी.

 आज भी जब देश की आम जनता सरकार के खिलाफ़ या अपनी कोई मांग को लेकर सड़क पर उतरती तो इनका नज्म हमेशा उस भीड़ का नेतृत्व करती हैं. जब छात्र अपने अधिकारों के लिए सड़क पर आते हैं तो उनका ये नज्म उनकी जुबान पर हमेशा रहता हैं. इस नज्म को कई बार जेएनू, दिल्ली विश्वविध्यालय जैसे मेहनीय संस्थानों में सुना गया हैं. आइये हम आपकों जोश मलीहाबादी की ऐसी नज्म की तरफ़ लिए चलते हैं जो आपमें ठंडी पड़ी हुई जोश को जगा देगी. जो आपकों इंकलाबी बना देगी. 

काम है मेरा तग़य्युर {बदलाव} नाम है मेरा शबाब {जवानी} 

मेरा ना'रा इंक़िलाब ओ इंक़िलाब ओ इंक़िलाब   

                                                         जोश मलीहाबादी 

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