विज्ञान को मात देती ईश्वर की शक्तियां

आधुनिकता के इस वैज्ञानिक युग मे जहाँ हर सवाल का जवाब विज्ञान वैज्ञानिकता के साथ देता है ,जहां विज्ञान के बिना किसी भी तरह की कल्पना करना  बेकार है लेकिन इसी युग मे ऐसी भी कई चीज़े है जो आज भी विज्ञान को निरुत्तर कर देती है और कई घटनाएं विज्ञान को मुह चिढ़ाती हुई प्रतीत होती है ।

ऐसी ही विशेषताओं से ओतप्रोत हमारे चारों तरफ फैली विशिष्टताएं इस बात की घोषणा करती है कि कोई तो ऐसी परम शक्ति है जो इस संपूर्ण ब्रम्हांड को चला रही है और उसके लिए कुछ भी असंभव नही और जब घटनाएं निरुत्तर विज्ञान से परे हो जाती है तो वो चमत्कार का रूप ले लेती है और इस विश्वास को प्रगाढ़ कर देती है कि उस परम सत्ता द्वारा संचालित इस ब्रम्हांड में वो सब कुछ संभव है जो हमारी कल्पना से परे भी हो सकता है।

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मैं गीतिका श्रीवास्तव मुझे हमेशा से ईश्वर पर बहुत विश्वास रहा है और विश्वास यह भी की यह सम्पूर्ण सृष्टि एक परम सत्ता द्वारा संचालित है जिसे हम भगवान कहते है , हमेशा नई चीजों के बारे में जानना और खास कर ईश्वर की   उपस्थिति को तलाशने में बहुत मज़ा आता है अपनी आदतानुसार  मैं इस बार भी किसी नई चीज की खोज में थी  ,तो पता चला कि उत्तरप्रदेश के जिले सीतापुर में नैमिषारण्य नाम का एक स्थान है जिसे लगभग सभी लोग जानते है नैमिषारण्य से लगभग 14 किलोमीटर दूर एक स्थान है जिसे रुद्रावर्त कहा जाता है बहुत ही सुंदर जगह है वह एक शिव जी का स्वयंभू मंदिर है जिसे रुद्रावर्त महादेव मंदिर के नाम से जानते है , जो ज्यादा प्रचलित तो नही लेकिन आश्चर्य चकित कर देने वाली घटनाओं से भरा पड़ा है और चमत्कारों की कहानियों की लंबी कतार है ,जान कर बड़ा अच्छा लगा तो कौतूहल वश नेट पर ढूंढने की कोशिश की लेकिन उसके बारे में ज्यादा पता नही लग पाया तो सोचा क्यों न चलकर ही पता लगाया जाए और चमत्कार को अपनी ही आंखों से देखा जाए तो हम चल पड़े सीतापुर की ओर, लोगो से पूछते पूछते लेकिन हमें आश्चर्य हो रहा था कि कोई भी हमे वहाँ इस मंदिर का पता नही बता पा रहा था और बहुत तो ऐसे मिले जो इसका नाम तक नही जानते थे लेकिन हमें तो वहाँ जाना ही था क्यों कि हमने वहां पहुंचने की ठान रखी थी ,और आखिर कर हम नैमिषारण्य पहुच गए वहां पहुच कर पूछा तो पता चला 14 किलोमीटर और चलेंगे तो एक गांव में ये रुद्रावर्त महादेव मंदिर मिलेगा ,पूछते पूछते आखिर हम पहुच ही गये रुद्रावर्त महादेव मंदिर ये मंदिर देखने मे तो छोटा था और कुछ खास देखने मे नही लग रहा था सामान्य सा था , और भीड़ भी नही थी मानो ऐसे दिव्य स्थान के बारे में किसी को ज्यादा कुछ पता ही नही था और बहुत कम लोग ही शायद जानते थे इस मंदिर के बारे में ,लेकिन हमारे मन में तो चमत्कार देखने की उत्सुकता थी,तो हमने वहां लगी कुछ प्रसाद की दुकानों की तरफ कदम बढ़ाया ,दुकानदार से बात कर पता चला की यहां 5 फल बेल पत्र कुछ फूल और दूध बस इतना ही प्रसाद रूप में चढ़ता है , और दुकानदार  ने बताया कि सामने बह रही गोमती नदी इन फलों को दूध और बेलपत्रों को अर्पण करना होगा और बाकी प्रसाद को पास के एक शिवलिंग मे चढ़ाने की प्रथा है , तो हमने भी प्रसाद लिया और चल दिये सामने बह रही गोमती के किनारे , हमारे अलावा वहां पर दो चार लोग और भी थे जो गोमती में अपना प्रसाद अर्पित कर रहे थे और तब तक हम वहां के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले रहे थे  जल्दी ही उन लोगो की पूजा खत्म हुई और अब हमारा नंबर था तो मैं सीढ़ी से नीचे उतरी  और एक दो स्टेप उतरने  के बाद वहां के एक आदमी ने शायद पुजारी होंगे हमे आगे जाने से रोक दिया क्यों कि गोमती मैया अपने पूरे उफान पर थी उन पुजारी जी की बात मानते हुए हम स्थिर हो गये और उनके आदेशानुसार हमे दूध को सबसे पहले चढ़ाने का मन बनाया ,दूध का गिलास हाथों में लेकर हमने गोमती में दूध डालना शुरू किया तो हमारी आंखों के दीदे फटे के फटे रह गए कि ये क्या दूध पानी की सतह पर न आकर धार के रूप में सीधे गोमती के पानी के अंदर प्रवेश कर रहा था मानो किसी का अभिषेक करने के लिए दूध स्वयं को रोक न पा रहा हो ,अमूमन दूध जब आप पानी मे डालते है तो वो पानी की सतह पर आकर इकट्टा हो जाता है लेकिन यह तो प्रकृति के नियमो को ताख पर रखते हुए दूध सीधा एक धार में पानी में समा गया अगले क्षण हम कुछ सोचते पुजारी जी ने आदेश दिया कि अब हम बेल पत्रों को जल आचमन के साथ एक एक कर ॐ नमःशिवाय का जाप करते पानी मे छोड़े जैसा उन्होंने कहा हमने वैसा ही किया और क्या देखते है बेलपत्र जो हल्की होती है पानी में डूबती जा रही है और देखते ही देखते आंखों से ओझल हो गयी  और एक एक कर हमने कई बेलपत्र अर्पित किए और सब के साथ एक समान व्यवहार पानी के सतह पर तैरने वाले बेलपत्र सीधे पानी के अंदर मानो कोई अदृश्य शक्ति उन्हें अपनी ओर खींच रही हो हमारे आश्चर्य का कोई ठिकाना नही था अब बारी फलों की थी और इससे ज्यादा ये की अब आगे क्या होने वाला है किस चमत्कार से हम रूबरू होने वाले है ? सोच ही रहे थे पुजारी जी का आदेश हुआ फलों को ॐ नमः शिवाय का जप करते हुए गोमती में अर्पण करें फलों में 2 अमरूद और एक सेब हमने फलं अर्पणं के उच्चारण के साथ गोमती में अर्पित किया अब की बार तो और भी आश्चर्य का ठिकाना नही रहा 3 फलों में सेब और एक अमरूद तो पानी मे जाकर पानी की सतह पर तैरने लगे लेकिन एक अमरूद सीधे पानी के अंदर डूब गया पुजारी जी ने तैरते हुए फलों को उठाया और हमे देते हुए कहा कि ये आपका प्रसाद है भगवान भोलेनाथ ने आपके एक फल को स्वीकार किया और बाकी आपको प्रसाद रूप में आपको वापस कर दिया ,दरअसल आप किसी भी मंदिर में जाये तो आपके प्रसाद का कुछ भाग चढ़ा कर बाकी का आपको प्रसाद के रूप में वापस कर दिया जाता है लेकिन यहां पर तो प्राकृतिक रूप से विज्ञान को ठेंगा दिखाते चमत्कार को पहली बार अपनी आंखों से देखा ,हमे तो अपनी आंखों पर यकीन ही नही हो रहा था कि जो फल अमूमन डूब जाने चाहिए थे वो पानी की सतह पर कैसे तैर  रहे थे ,अब हम इसके रहस्य के बारे में जानना चाहते थे इसके लिए हमे वहाँ के पुजारी से बात की तो पता चला कि जहां हम सब फल और बेलपत्र चढ़ा रहे थे वह नीचे पानी के अंदर एक शिवलिंग है जो स्वयंभू शिवलिंग है और माना जाता है कि साक्षात शिव उस लिंग में वास करते है और जितना भी हमने देखा वो सब पानी के अंदर शिवलिंग के प्रताप से ही हो रहा था भगवान शिव जिस प्रसाद को ग्रहण करते है वो कैसा भी हो पानी मे डूब जाता है और जिसे प्रसाद रूप में देते है वो पानी की सतह पर तैरने लगता है भले उसका वजन कितना भी हो। ईश्वर की उपस्थिति का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि बेल पत्र जिसे तैरते रहना चाहिए था वो पानी मे डूब जाता है बातो बातो में यह भी जाना कि यह चमत्कार सिर्फ इसी स्थान पर होता है ।अन्यत्र कही , विज्ञान जस का तस है लेकिन इस स्थान पर विज्ञान भी कुछ भी कहने लायक नही रह जाता ,बाकी के पुष्प और फलों को हमने पास ही मंदिर में चढ़ा दिया।

गीतिका श्रीवास्तव

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