निरंतर उत्पादन:खनिज का भंडार होने के बावजूद लातेहार जिले में है बेरोजगारी का आलम

लातेहार : नहीं लगे खनिज आधारित उद्योग धंधे जिले वासी महसूस करते हैं खुद को ठगे हुएप्राकृतिक संसाधनों से अमीर रहने के बावजूद आज भी गरीब है लातेहार जिला के निवासी लातेहार भारत के झारखंड में एक ऐसा जिला लातेहार भी  में एक शहर है । यह अपने प्राकृतिक वातावरण, जंगल, वन पर्यटक  उत्पादों और खनिज भंडार के लिए जाना जाता है। लातेहार 1924 से एक उप-विभाग के रूप में पलामू जिले का हिस्सा रहा। इसे 4 अप्रैल 2001 को झारखंड सरकार की अधिसूचना संख्या 946 दिनांक 04.04.2001 के अनुसार उप-विभागीय दर्जा से बढ़ाकर जिला बना दिया गया। लातेहार झारखंड के उत्तर-पश्चिमी कोने में पलामू कमिश्नरी में स्थित है। यह छत्तीसगढ़ राज्य के अलावा रांची , लोहरदगा , गुमला , पलामू और चतरा जिले से घिरा हुआ है और जिला मुख्यालय 84.51198 पूर्वी देशांतर और 23.741988 उत्तरी अक्षांश पर स्थित है। यह मुख्य रूप से आदिवासी बहुल जिला है, जिसमें लगभग 45.54% आबादी अनुसूचित जनजातियों की है जिले का कुल क्षेत्रफल 3,622.50 किमी 2 है और एक ब्लॉक मुख्यालय जिला मुख्यालय से 200 किमी से अधिक दूर है।बहुत ही खूबसूरत और मनमोहक जिला है यह पर । अजीब विडंबना है कि इस पूरे लातेहार जिले से भारत के विभिन्न भागों में कोयले की आपूर्ति की जाती है यहां के कोयले से न जाने इस देश में कितने औद्योगिक प्लांट का संचालन हो रहा है लेकिन फिर भी प्राकृतिक संसाधन प्रचुर रहने के बावजूद इस पूरे क्षेत्र में कोई भी औद्योगिक प्लांट का संचालन अभी तक शुरू नहीं हो पाया है   पिछले कुछ वर्षों में यहां पर बड़े जोर शोर से दो औद्योगिक प्लांट की आधारशिला रखी गई थी जिस में चकला स्थित अभिजीत पावर प्लांट लिमिटेड एवं चतरो स्थित ऐशर पावर प्लांट लेकिन प्लांट 90% तक तैयार हो जाने के बावजूद भी इन दोनों प्लांट  को स्क्रैप के भाव बेच दिया गया और यह सब होते रहा लेकिन फिर भी किसी जनप्रतिनिधि ने इस मुद्दे को कभी भी सार्थक पहल हेतु नाही कोई प्रयास किया और ना ही इसके लिए कोई आवाज बुलंद की।  बल्कि दर्शक बनकर सारा माजरा देखते रहें। अगर यह दो  पावर प्लांट चालू हो जाते तो निश्चित रूप से ही  लातेहार जिले के 20000 लोगों को नौकरी मिलती। और यहां  के  युवक   युवतियों और ग्रामीणों को पलायन करने पर मजबूर नहीं होना पड़ता । प्रकृति ने लातेहार जिला को अपार खनिज संपदा दी है. जिले में कोयला एवं बाक्साईट का अकूत भंडार है. एक अनुमान के अनुसार अगर सौ वर्ष भी यहां खुदाई की जाए तो भी यहां का कोयला खत्म नहीं होगा. लेकिन आज तक लातेहार में खनिज पर आधारित कल कारखाने नहीं लगे. वर्ष 2005 में तत्कालीन अर्जुन मुंडा की सरकार ने हिंडाल्को के साथ लातेहार में अल्युमिनियम कारखाना एवं कैप्टिव पावर प्लांट लगाने के लिए एमओयू किया तो लोगों को लगा शायद लातेहार के दिन बहुरेगें. लेकिन ऐन मौके पर हिंडाल्को ने यह कहकर कि लातेहार में पर्याप्त पानी नहीं है, कारखाना को अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया.इसके बाद से लोगों के दिलों में निराशा घर गयी. लोग आज भी यहां खनिज संपदा आधारित कल कारखानों की बाट जोह रहे हैं.हालांकि जिले के लातेहार में एनटीपीसी के द्वारा चंदवा प्रखंड के बनहरदी ग्राम और बालूमाथ के धाधू ग्राम में  हिंडाल्को के द्वारा चकला कोयला उत्खनन को ले कर कार्य प्रगति पर है। इधर लातेहार तुबैद से खनन जारी है कोलियरी खुल जाने से क्षेत्र में रोजगार के अवसर अवश्य बढ़ेंगे लोगो को उम्मीद थी पर ऐसा कुछ नहीं देखने को मिल रहा।लातेहर के युवा आज भी बेरोजगार  के बेरोजगार है।

सरकारी योजना हो या खनन  से संबंधित योजना  सभी जगहों में हो रहा है। आधुनिक उपकरणों का उपयोग   

 क्षेत्र के बेरोजगार मजदूरों का पलायन पर रोक लगाने की मांग आए दिन कुछ प्रतिनिधियों द्वारा उठाया जाता रहा है।  हमारा झारखंड राज्य में खनिज संपदा का प्रचुर भंडार है। फिर भी हमारी जनता भूखमरी व गरीबी के शिकार हैं। हमारे लातेहार जिले में  कोयला,  बॉक्साइट क्वार्ट्ज  पत्थर फायरकेले समेत कई मिनरल्स प्रचुर मात्रा में होते हुए  भी यहां के अधिकांश युवक बेरोजगार हैं। जो भी खनिज संपदा है। उसका निरंतर उत्पादन किया  तो जा रहा है, लेकिन लातेहार जिले के व्यक्तियों की आय अन्य जिलों से कम है। इसका मुख्य कारण नेताओं एवं अधिकारियों के गलत नीति, अशिक्षा एवं ग्रामीणों को अपने हक एवं अधिकार की जानकारी नहीं होना,गलत वोट का इस्तेमाल कर भ्रष्ट व्यक्तियों को शासन का बागडोर में बैठाना समेत कई कारण है। इस लिए यहां के लोगों को बेरोजगारी से मुक्ति   नही मिल रही है।जिले के बालूमाथ साइडिंग फूल बसिया बुकरू कुसमही हो या टोरी  कोल साइडिंग और कई कोल खदान है। सिकनी छोड़कर कही भी मैन्युअल काम नहीं लिया जा रहा है। सभी जगहों में आधुनिक उपकरणों से कार्य हो रहे है। स्थानीय लोगों को रोजगार से जोड़ने की दिशा में जनप्रतिनिधियों ने कभी कंपनी अथवा प्रशासन में दबाव डाला ही नहीं। जिसके कारण सरकारी योजना हो रैक लोडिंग हो या फिर गाड़ी सभी जगहों पर आधुनिक उपकरणों को  उपयोग में लिया जा रहा है। जिसके कारण यहां के युवा रोजगार के लिए दूर दराज के  शहरों राज्यों में पलायन कर रहे हैं। स्थानीय स्तर पर खनिज का दोहन करने आयी कंपनियां भी यहां की युवाओं को नौकरी देने में आनाकानी कर रही है। यहां के युवाओं को रोजगार कैसे मिले इस दिशा में किसी भी पार्टी के द्वारा युवाओं को आश्वासन तक नहीं दिया जा रहा है। बेरोजगारी चरम सीमा पर है। बेरोजगार प्रदेश जाने को मजबूर है।

उच्च शिक्षा के लिए भी नहीं किया गया है जनप्रतिनिधियों द्वारा कोई पहल

पिछड़ा लातेहार जिला एक समय अति नक्सल प्रभावित इलको में से एक था ।, बावजूद इसके आज तक यहां शिक्षा के दिशा में कोई खास कार्य नहीं किए गए। मजबूरी यहां के लोगों को डिग्री के लिए भी दूसरे जिले का रुख करना पड़ता है। टेक्निकल शिक्षा के नाम मात्र की है। आज तक ना यहां कोई इंजीनियरिंग कॉलेज खुला ना ही कोई मेडिकल कॉलेज। दो डिग्री कॉलेज की आधारशिला रखी गई है जिसमें एक डिग्री कॉलेज में नामांकन इसी वर्ष शुरू हो चुका है। वहीं औद्योगिक शिक्षण के नाम पर चंदवा में एक औद्योगिक शिक्षण संस्थान की स्थापना भी की गई थी सारे बुनियादी सुविधाओं से सुसज्जित होने के बावजूद भी   इस औद्योगिक संस्थान में कुछ बच्चों ने अपना नामांकन भी करवाया था परंतु शिक्षकों के अभाव में आज भी नियमित रूप से कक्षाएं संचालित नहीं हो पाती हैं।लातेहार जिले में बड़ी-बड़ी कंपनियां अपना काम कर रही है उन लोगों ने भी इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया,w इसका मुख्य कारण यहां जनप्रतिनिधियों का उदासीनता है। उन्होंने आज तक में कोई ठोस पहल की ही नहीं।

बेरोजगारी दूर करने के लिए  व्यवसाय  ही मुख्य आधार रह गया है। 

लातेहार जिले की शहरी व ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा सी गयी है. इसका असर दोनों क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है. ग्रामीण क्षेत्र में लाह व महुआ की लगातार कम होती पैदावार किसानों की कमर तोड़ रही है. वहीं शहरी क्षेत्र में लोगों के पास आय का कोई साधन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. इसका सीधा असर लातेहार के बाजार पर दिख रहा है. बाजार की रौनक फीकी पड़ गईं है। शहर के लोगों के आय का मुख्य स्त्रोत व्यवसाय है. सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी भी स्थानीय लोग नहीं है.2010 के दशक तक शहर में दर्जनों आढ़त थे. इन आढ़तों में लाह, महुआ, तेलहन व दलहन की खरीददारी होती थी. मार्च से जून-जुलाई तक लाह की फसल की खरीदारी होती थी. एक जमाना था जब लातेहार को लाह के लिए विश्व भर में अग्रणी माना जाता था. लेकिन आज यहां लाह की पैदावार 10 प्रतिशत भी नहीं रह गयी है. यही हाल महुआ का है पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एवं प्रतिकूल मौसम के कारण लाह व महुआ की फसल मारी जा रही है. लिहाजा व्यवसायियों का व्यवसाय ठप पड़ गया है. आढ़त में ताले लटक गये हैं. बाजार की रौनक यहीं से कम पड़ने लगी. लाह व्यवसायी सचिन साव संतोष अग्रवाल वेदांत अग्रवाल प्रकाश साव मोनू साव  बिकास  अग्रवाल गोलू साव किरण प्रसाद कहते हैं कि सरकारी एवं प्रशासनिक उपेक्षा के कारण जिले से लाह की पैदावार घटती जा रही है. किसानों को समय पर लाह के बीज उपलब्ध करा कर एवं उनका मार्गदर्शन कर लाह की पैदावार को फिर से बढ़ाया जा सकता है।

व्यापार वाणिज्य और पशुपालन की  स्थिति चिंताजनक 


पुराने महाजनों और जमींदारों की जगह, विभिन्न बैंक अपनी शाखाओं का संचालन कर रहे हैं  लेकिन यह भी सत्य  है कि अधिकांश गांव इतने बिखरे हुए हैं कि प्राथमिक व्यापार की व्यवस्था व्यापार और गांव अभी भी साहुकारों  पर निर्भर  हैं। धान की पिटाई, दोना, पत्तल  बनाने, बांस  की टोकरी बनाने, महुआ फूलों की बिक्री, लाह , केंदु  के पत्ते और अन्य छोटे वन उत्पाद व्यापारिक गतिविधियों के मुख्य घटक हैं। प्रमुख उद्योगों और रोजगार के अवसरों की अनुपस्थिति में, आर्थिक विकास के विकल्प सीमित हैं। पशुपालन, पशुधन की गुणवत्ता बहुत खराब है गाय, बकरी आदि स्थानीय किस्म के हैं और औसत दूध उपज बहुत कम है। लातेहार में पशुपालन की अपार संभावनाएँ  हैं। सूअर और मत्स्य पालन आदि की अच्छी संभावनाएं हैं, लेकिन यह क्षेत्र अभी भी पूर्ण रूप से विकसित नहीं है।

 

रिपोर्टर : बब्लू खान

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