रानीश्वर प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांवों में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है जितिया पर्व

दुमका :       रानीश्वर  प्रखंड क्षेत्र के  विभिन्न गांवों में हर्षोल्लास व उत्साह के साथ जितिया पर्व मनाया जा रहा है| प्रखडं क्षेत्र के आसनबनी, जीवनपूर, रंगालिया, धानभषा, अलीगंज, चोपाबथान, हरिपुर, राणाबांध, प्रतापपूर, जामजोड़ी, निझोडी, बोराड्ंगाल, कुकड़ीभाषा, रघुनाथपूर, पाथरा, रानिश्वर, सूखजोड़ा, पाटजोड़, बासकुली, बोडा, मानिकडिह, टोगरा, कुमिरदहा  सहित विभिन्न गांवों में हर्षोल्लास के साथ निर्जला व्रत जितिया मनाया जा रहा है। बता दें कि हिन्दू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व है इस व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से नवमी तिथि तक जीवित्पुत्रिका व्रत मनाया जाता है| अष्टमी तिथि के दिन माताएं अपने संतान की लंबी आयु व सुख-समृद्धि की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती है|इस व्रत के संबंध में मान्यता है कि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताया था कि यह व्रत संतान की सुरक्षा के लिए किया जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जो जीमूतवाहन से जुड़ी है। सत्य युग में गंधर्वों के एक राजकुमार थे, जिनका नाम जिमूतवाहन था। वे सद आचरण,सत्यवादी,उदार और परोपकारी थे। जिमूतवाहन को राजसिंहासन पर बिठाकर उनके पिता वन में वानप्रस्थी का जीवन बिताने चले गए। जिमूतवाहन का राज-पाट में मन नहीं लगता था। वे राज-पाट की जिम्मेदारी अपने भाइयों को सौंपकर पिता की सेवा करने के उद्देश्य से वन में चल दिए। वन में ही उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या के साथ हो गया। वन में भ्रमण करते हुए जब एक दिन वह काफी आगे चले गए,तो एक वृद्ध को रोते हुए देखा। उनका हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने वृद्धा से उसके रोने का कारण पूछा तो उसने बताया- मैं नागवंश की स्त्री हूं। मुझे एक ही पुत्र है। नागों ने पक्षीराज गरुड़ को भोजन के लिए प्रतिदिन एक नाग देने की प्रतिज्ञा की है। आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बलि का दिन है। जिमूतवाहन ने वृद्धा को आश्वस्त करते हुए कहा - डरो मत मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा। आज तुम्हारे पुत्र की जगह स्वयं को लाल कपड़ों से ढक कर शीला पर लेटूंगा। जिमूतवाहन ने शंखचूड़ के हाथ से लाल कपड़ा ले लिया और उसे लपेट कर निश्चित शिला पर लेट गए। गरुड़ जी आए और लाल कपड़े में लिपटे जिमूतवाहन को पंजे से पकड़ कर पहाड़ के शिखर पर जा बैठे। इस बीच अपनी पकड़ में आए प्राणी की आंखों में आंसू देखकर गरुड़ जी आश्चर्य में पड़ गए। उसे परिचय पूछा, तो जिमूतवाहन ने सारी कथा सुना दी। गरुड़ जी उनकी बहादुरी और दूसरों की प्राण रक्षा के लिए खुद को बलिदान करने की भावना से बहुत प्रभावित हुए।उन्होंने जिमूतवाहन को जीवनदान दे दिया और नागों की बलि न लेने का वचन भी दिया। जिमूतवाहन के त्याग और साहस से नाग जाति की रक्षा हुई। तभी से संतान की सुरक्षा और सुख के लिए जिमूतवाहन की पूजा की शुरुआत हुई। यह व्रत कठिन तो है, परन्तु बहुत फलदाई भी है। इस पर्व के अष्टमी तिथि पर माताएं निर्जला व्रत रखती है और जिमूतवाहन और साल की डाल, काया फूल,बांस पत्ता,महुआं आदि की पूजा करती है तथा अगले दिन की सुबह सभी को नदी में विर्सजन कर व्रत को तोड़ती हैं।

रिपोर्टर :  गियासुद्दीन अंसारी

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