छत्तीसगढ़ के बस्तर की अनोखी परंपरा, यहां देवी को चढ़ता है काला चश्मा
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छत्तीसगढ़ का बस्तर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ साथ बस्तर में तीज त्यौहारो में निभाये जाने वाले अपनी अनूठी परंपराओ ,रीति रिवाज के लिए पूरे देश में जाना जाता है, और इनमें से एक अनूठी परम्परा है. बस्तर की परम्पराए अपने आप मे अनूठी और विश्वविख्यात है. चाहे वह बस्तर का दशहरा हो या फीर बस्तर का गोंचा पर्व हो.. एक ऐसी ही आदिवासियों की अनूठी और रोचक परंपरा हैं जो 3 साल में एक बार मनाया जाता है.बस्तर के कोटमसर इलाके में आसपास के 28 गांव के लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए ग्राम देवी बास्ता बंदिन देवी को काला चश्मा चढ़ाते हैं.
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के ग्राम कांगेरवैली नेशनल कोटमसर में हर तीन साल में मां बस्ताबुंदिन की यात्रा होती हैं, यहां माता को काला चश्मा चढ़ाने की परंपरा हैं। यहां के बुजुर्गों का मानना है, कि चश्मा चढ़ाने से मां उनके जंगलों को बुरी नजर से बचाती हैं, जिस परम्परा को आज यहां युवा पीढ़ी भी अपना रहे हैं। इस संबंध में एक स्थानीय ने बताया कि 3 साल में एक बार यहां आयोजन किया जाता है, बड़ा मेला भी लगता है। खेती को किसी की नजर न लगे इसलिए चश्मा चढ़ाया जाता है। कई पीढ़ियों से ये चलता आ रहा है।
छत्तीसगढ़: बस्तर के कोटमसर में देवी बास्ताबुंदिन को काला चश्मा चढ़ाने की अनूठी और रोचक परंपरा है।
एक स्थानीय ने बताया, "3 साल में एक बार यहां आयोजन किया जाता है, बड़ा मेला भी लगता है। खेती को किसी की नज़र न लगे इसलिए चश्मा चढ़ाया जाता है। कई पीढ़ियों से ये चलता आ रहा है।
कांगेर वैली मे निवास करने वाले आदिवासियों संस्कृति के जानकार बताते हैं, कि पहले गांव के एक ही परिवार के द्वारा माता की पूजा कर मां को काला चश्मा भेंट किया जाता रहा, लेकिन आज इस परंपरा को पूरे क्षेत्र वासियों ने अपना लिया हैं।
क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी
मंदिर के पुजारी जीतू बताते हैं, कि इस मेले का आयोजन होना हैं। माता की कृपा से इस साल जंगल हरे भरें रहेंगे, वन देवी रक्षा करेंगी और भक्त इस बार भी माता को चश्मा चढ़ा कर अपनी मनौती मांगते हैं। पुजारी बताते हैं कि माता को चढ़ाया चश्मे भक्तों में प्रसाद के रुप में वितरित किया जाता हैं। भक्त इन चश्मे को पहनकर गांव की परिक्रमा करते हैं ताकि देवी मां बास्ताबुंदिन की कृपा पूरे गांव और ग्राम वासियों पर बनी रहें।
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