मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन

ललितपुर -बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, ललितपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्यक्ष डॉo मुकेश चंद के नेतृत्व में विकास खंड विरधा के ग्राम चिरकोडर में "मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन" विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। केंद्राध्यक्ष डॉo मुकेश चंद ने मृदा परीक्षण उपरांत संतुलित पोषक तत्व का प्रबंधन, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, मेंढ़ बंधी, उचित फसल चक्र, फसलों के अवशेष प्रबंधन के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई। इसके साथ ही साथ मृदा नमूना लेने की विधि भी बताई गई। विषय वस्तु विशेषज्ञ- सस्य विज्ञान डॉo दिनेश तिवारी ने बताया कि फसलों की अच्छी पैदावार के लिए गहरी जुताई बहुत ही आवश्यक होती है। गहरी जुताई के कारण ही फसलों को जड़े बनाने और उन्हें पोषक तत्व पहुँचाने में मदद मिलती है। गर्मियों में यानि की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करने से कीट प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन और मृदा जनित रोगों का प्रबंधन होता है जिससे फसल उत्पादन में 15-20 प्रतिशत तक की वृद्धि हो जाती है। किसान भाई ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई मई-जून के महीने में मिट्टी पलटने वाले हल जैसे मोल्ड बोर्ड प्लाऊ, टर्न रेस्ट प्लाऊ या रिर्वस विल मोल्ड बोर्ड प्लाऊ आदि कृषि यंत्रों से कर सकते हैं। किसानों को कम से कम 3 वर्षों में एक बार खेतों की 20 सेंटीमीटर तक की गहरी जुताई करनी चाहिए।
 मिट्टी में लगातार एक जैसी फसलें लगाने से एवं रासायनिक खादों व दवाओं से मृदा सख्त एवं कठोर हो जाती है जिससे मिट्टी में सीमेंटेड लेयर (कड़ी परत) बन जाती है और भूमि में पानी प्रवेश नही कर पाता है। जिससे लगातार जल स्तर मे गिरावट देखी जा रही है। वहीं मिट्टी कठोर होने से मृदा कि जल धारण क्षमता एवं उर्वरा शक्ति कम होती जाती है तथा फसलों में विभिन्न प्रकार के रोग, कीट एवं बीमारियों एवं खरपतवारों की समस्या दिन प्रति दिन बढ़ती जाती है। जिससे फसलों के उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है।

गहरी जुताई से मिलेंगे यह लाभ
1- ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करने से भूमि की ऊपरी कठोर परत टूट जाती है। जिससे मृदा में वर्षा जल धीरे-धीरे रिस-रिस कर जमीन के अंदर चला जाता है तथा वर्षा जल का रुकाव जमीन में अत्यधिक होने के कारण मृदा में जल धारण क्षमता एवं जल स्तर में वृद्धि हो जाती है।
2- फसल अवशेष के मृदा में दव जाने से कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि हो जाती है, जिससे मृदा में जैविक कार्बन का स्तर बढ़ जाता है और मृदा की भौतिक संरचना में सुधार होता है।
3- मृदा में हवा का आवागमन बढ़ जाता है एवं सूक्ष्म जीवों की संख्या में भी वृद्धि हो जाती है।
4- जैविक पदार्थों का विघटन सर्वाधिक होता है, जिससे भूमि कि उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है।
5- मृदा में वर्षा जल के सोखने की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे वायुमण्डल की नाइट्रोजन जल में धुल कर मृदा में चली जाती है, जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि हो जाती है।
6- ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई खेत की ढ़ाल की विपरीत दिशा में करने से मृदा एवं जल कटाव में कमी आती है और वर्षा का जल बहकर नुकसान हो जाने से भी बच जाता है।

7- ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई से जमीन के अंदर छिपे हुए कीटों के अंडे, प्युपा आदि जमीन के ऊपर आ जाते है और तेज धूप के कारण मर जाते हैl खरपतवारों के बीज एवं रोग फैलाने वाली कवक, बेक्टीरिया एवं वायरस भी तेज धूप के कारण मर जाते है, जिससे अगली फसल में रोग, कीट एवं खरपतवारों की समस्या कम होती है।
प्रशिक्षण में श्री राजपाल, श्री राजू, श्री विनोद पाल सहित 30 प्रगतिशिल कृषक और कृषक महिलाओं ने प्रतिभाग किया।

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