फसल अवशेष प्रबंधन तकनीक पर प्रशिक्षण का आयोजन

ललितपुर - बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अंतर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, खिरियामिस्र, ललितपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्यक्ष डॉo मुकेश चंद के नेतृत्व में विकास खंड बिरधा के ग्राम बंट में 'फसल अवशेष प्रबंधन तकनीक' विषय पर पर एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। 

केंद्राध्यक्ष डॉo मुकेश चंद ने बताया कि आबादी के विस्तार और खाद्यान्न की बढ़ती मांग के बीच, किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य से समझौता किए बिना कृषि उत्पादकता में सुधार करने की आवश्यकता है। इसके मद्देनजर, टिकाऊ फसल अवशेष प्रबंधन तेजी से महत्वपूर्ण होता जा रहा है।
कृषि विज्ञान केन्द्र, ललितपुर के विषय वस्तु विशेषज्ञ- सस्य विज्ञान डॉo दिनेश तिवारी ने बताया कि   फसल अवशेष पौधे के वे भाग (जैसे-भूसा, तना, डंठल, पत्ते व छिलके इत्यादि) होते हैं, जो फसल की कटाई और गहाई के बाद खेत में छोड़ दिए जाते हैं।  तकनीकों की जानकारी के अभाव एवं कुछ किसान जानकारी होते हुए भी अनभिज्ञ बनकर फसल अवशेषों को जला रहे हैं। फसल अवशेषों का प्रबंधन उचित तरीके से नहीं किया जाता है। इसलिए यह हमारे लिए बहुत ही गंभीर समस्या बनती जा रही है। इसका उपयोग मृदा में जीवांश पदार्थों के रूप में न करके अधिकतर भाग को जलाकर नष्ट कर दिया जाता है या दूसरे घरेलू कार्यों में उपयोग कर लिया जाता है।  फसल अवशेष, कटाई के बाद खेत में छोड़ी गई पौधों की सामग्री, मिट्टी के स्वास्थ्य, कार्बन पृथक्करण और कटाव नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस प्रबंधन दृष्टिकोण का लक्ष्य मिट्टी और पानी की गुणवत्ता को संरक्षित करना है जबकि कई अन्य पारिस्थितिक और आर्थिक लाभ प्रदान करना है। उच्च पैदावार और ईंधन, बिजली, और सिंथेटिक कीटनाशकों और उर्वरकों जैसे महंगे इनपुट का कम उपयोग अधिकांश स्थितियों में फसल अवशेष प्रबंधन पर स्विच करने को उचित ठहराता है। कम अवशेष वाले पौधों के बाद अधिक अवशेष वाले पौधे या कवर फसलें बोना आम तौर पर फसल अवशेष प्रबंधन में पहला कदम होता है। मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए, बुवाई/रोपण के बाद कम से कम 30% अवशेष कवर का लक्ष्य रखें। उचित फसल अवशेष संरक्षण और प्रबंधन रणनीतियों का उपयोग करने का महत्व निर्विवाद है क्योंकि वे कृषि संबंधी, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ लाते हैं। स्थानीय रूप से अनुकूलित प्रबंधन दृष्टिकोणों में मिट्टी की गुणवत्ता, जल प्रतिधारण और फसल की पैदावार में सुधार करने की क्षमता में  बृद्धि होती है। सुनियोजित फसल अवशेष प्रबंधन से लंबे समय में मिट्टी की उर्वरता और समग्र मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। जुताई के बाद खेत में बची हुई बहुत सी वनस्पति सामग्री उपज बढ़ाने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से योगदान देती है जैसे मृदा अपरदन को कम करना या रोकना; पौधों की वृद्धि के लिए मिट्टी को अनुकूल तापमान पर रखना; जड़ वृद्धि को बढ़ावा देना;
मिट्टी के पीएच में सुधार करना और पौधों के लिए अधिक सूक्ष्म पोषक तत्व उपलब्ध कराना; पुनः उपयोग के लिए पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण;
मिट्टी को कार्बनिक पदार्थ, विशेष रूप से कार्बन से समृद्ध करना;
मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्मजीवों को समर्थन देना; मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार; भूमि की जल धारण करने और निकास की क्षमता में वृद्धि; मृदा संपीडन को कम करना और 
भूमि की उर्वरता को संरक्षित करना। फसल कटाई के बाद बचे कृषि अवशेष से मिट्टी को अधिक जल धारण करने में मदद करते हैं। पौधों के अवशेषों से ढकने से मिट्टी में कम सूर्य की रोशनी प्रवेश करती है और मिट्टी के ऊपर हवा का प्रवाह धीमा हो जाता है, जिससे वाष्पीकरण दर को कम करने में मदद मिलती है। फसल अवशेष गिरती हुई वर्षा की बूंदों से होने वाली गति ऊर्जा को सोखकर मिट्टी के अलग होने से रोकते हैं। जिससे अधिक पानी सोख पाता है और कम बह पाता है। फसल अवशेषों की जल-बचत क्षमता और उचित खेत प्रबंधन के साथ, किसान सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी की मात्रा में कटौती कर सकते हैं। उचित अवशेष प्रबंधन से सिंथेटिक कीटनाशकों और उर्वरकों की आवश्यकता कम हो जाती है। कम जुताई या बिना जुताई वाली खेती की तकनीक का उपयोग करना, जिसमें अक्सर खेत में कृषि अवशेष छोड़ना शामिल होता है, मिट्टी की तैयारी से जुड़ी लागत को कम कर सकता है। कृषि अवशेषों को मिट्टी में मिलाने से कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है, जिससे मिट्टी की जल और पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता बढ़ती है और वनस्पति विकास को बढ़ावा मिलता है। पौधों के अवशेष लाभकारी कीटों और अन्य जीवों के लिए आश्रय प्रदान करते हैं, जिससे जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद मिलती है। खेत में अधिक मात्रा में पौधों की सामग्री छोड़ने से कार्बनिक कार्बन को बढ़ावा मिलता है और मिट्टी में कार्बन अवशोषण में सुधार होता है। मिट्टी में कार्बनिक कार्बन और नाइट्रोजन के भंडार अक्सर अवशेषों को हटाने पर कम हो जाते हैं। फसल अवशेष को जलाने से होने वाले नुकसान एवं पर्यावरण सुरक्षा के मद्देनजर फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए विभिन्न योजनाओं के संचालन की जानकारी के साथ ही साथ फसल अवशेष प्रबंधन की विधियां जैसे बिना जुताई वाली खेती, रिज- टिलेज, मल्चिंग और संरक्षण पद्धतियों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई। 
प्रशिक्षण कार्यक्रम में 30 से अधिक प्रगतिशिल कृषक और कृषक महिलाओं ने प्रतिभाग किया।
संवाददाता महेन्द्र की रिपोर्ट

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