शीर्षक: अकेलापन" कया हे ?

लेखिका :स्नेहा दुधरेजिया गुजरात

कई बार हम सब के साथ होते हुवे भी अकेला मेहसुस करते हे क्या वो हे अकेलापन पता नय मुजे तो बस इतना पता हे कि लाइफ मे जब भी ये लगने लगे कि आज मन अशांत हे वो है अकेलापन। क्योकि आजकल की जिंदगी मे कोई इन्सान अकेला होता हि नहि है । हर इन्सान के साथ फेमेली फ्रेन्स सब होते है ।पर कई बार ऐसा क्यो लगता है कि मे अकेला हु । वो शायद इसलिये कि हम खुदको नहि समजे है हमे ये नहि पता कि हमे क्या चाहीये। मन की। अशांति हि शायद "अकेलापन" है । कईबार हम ये सोचते हे कि मुजे लाइफ मे कुछ मिला हि नहि या जो मिला हे मुजे वो नहि कुछ और हि चाहिये था।

जब हम छोटे होते हेना तो हमे इस दुनिया से कुछ मतलब हि नही होता बस अपनी हि मस्ती मे जिते है बस जल्दि बडा होना चाहते हे।तब ये पता नही होता के बडा होने से कुछ फायदा नही है बचपन हि है जब सुकुन होता है लाइफ मे। न कुछ खोने का गम न कुछ पाने कि तम्नना बस चेहरे पर हसीं और आसमासा जहा। जब भि हमे अकेलापन मेहसुस होता है तो हर कोई अपने बचपन को याद करता है।पर एक बार बडे हो गये तो सब खतम। अरे यार कुछ खतम नही होता बस हम जिंदगी जिना भुल जाते है। मुजे लगता हे के ये है अकेलापन ।

जब भि हमे कोई छोडकर चला जाये और हम हार जाये के अकेले हे ये अकेलापन नहि है बस हमने ये सोचा कि हम अकेले है ये है अकेलापन। अगर आप का मन अशांत हे वो है अकेलापन। पर ये अकेलापन कोई बिमारि तो नही है जो छुने से फेलति है  या कोई डाकु नहि है जो आप को लुट ले।बस इसे जितना अपने अंन्दर रेहने दोगे उतना हि आप को अंन्दर से खोखला कर देगा। तो क्यों जितने दे इस अकेलेपन को ।

जिंदगी मे खुश रेहने से ज्यादा जरुरी कुछ नहि है ।कई बार अगर  किसीको कोई छोडकर गया है तो वो खुदको दुनियाका सबसे दु:खि व्यक्ति समजने लगता है ये जो सोच हेना वहि है "अकेलापन"

बाकि तो भाई इस दुनियां मे अकेले हि आये थे अकेले ही जाना हे फिर क्यो किसिकेलिए रोये खुद को अकेला समजे।आप का कोइ दोस्त आप से बीछड गया है तो हमे उसकि कमी मेहसुस होती है ये लाजमी है पर ये ठिक तो नहि कि हम सारि उम्र मर मर के खुद को अकेला समजकर जिये। तो आप को लगता होगा के जिस पर बितति है वहि जाने वो तो ।पर ऐसा नहि हे हम भि इसि कश्ति मे सवार है पर हम अकेले नहि है हम तो भाइ बोहत खुश है ऐसा क्यो है तो येना एक राज है। अरे यार राज बाज कुछ नही है बस हमारी सोच अकेली नही है । कहने का  मतलब ये हे कि आप अगर अपनि सोच को बदलते है तो बोहत कुछ बदल जाता है। ईतनी सी तो दुनिया है खयालो कि तो हमारे खयाल भि मस्त होने चाहिये।अगर कभि चिंटिंअो को देखोगे तो पता चलेगा के वो कभि अकेले नहि होति पर कभि गोर से देखोगे तो पता चलेगा के हर चिंटिं अपना खाना खुद उठाति है कहने का मतलब हे कि अकेलि तो वो बि है पर खुश है।अगर कभी आप को भि अकेलापन मेहसुस होतो उन चिंटिंअो के पास जाकर बैठिये उनको खाना खिलाइए मस्तवालि फिलिंग आयेगी।उस वक्त आप कितने भि अकेले हो या अकेलेपन से जुज रहे हो फिर भि आप को अन्दर से सुकुन महेसुस होगा। आप को लगता है की ये चिंटिं और अकेलापन का क्या कनेक्शन है तो वो ये हे कि जब भि आप उनको खाना खिलाते हो तब मिलने वालि शांति मिलने वाला सुकुन । क्योकि मेरे मुताबिक मन कि अशांति हि है अकेलापन ।

लाइफ है ना दोस्त किसी के लिये नही रुकति ना किसी के बिना रुकेगी । तो हम क्यो खुदको कोश के या खुद को अकेला मान के जिये। जरा सि जिंदगी के जरा से सपने हे जो साथ हे वोहि अपने है। गम न कर तुने क्या खोया है बस यहि सोच के क्या कुछ पाया है। जब ये बात समज लेंगे ना तो ये जो अकेलापन है ना दिल और दिमाग कि बाउंड्रि छोड के कोसो दुर भाग जायेगा। बस ये याद रखना चाहिए अकेले है तो क्या गम हे चाहे तो हमारे बस मे क्या नही।

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