भगवा में भगवान बसे है

 लेखिका- स्नेहा दुधरेजीया
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"क्या है ये भगवा रंग क्यों है ये भगवा रंग?
हर धर्म की तरह हिन्दु धर्म का भी अपना एक रंग है जिसे भगवा रंग कहते है जो,हिन्दुओ की पहचान है।  भगवा रंग जीत , उम्मीद,आशा,विश्ववास ,अनुशासन, जनकल्याण का रंग है यूं कहे कि, भगवा में सृष्टि है,भगवा में समष्टि है ,भगवा में भगवान है। भगवा रंग  सूर्य और अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है।अग्नि और सुर्य देव जो कि पवित्र देव है ।इनका हमारे जीवन में काफी महत्व है।सुर्य जिनकी रोशनी से सुबह होती है ,सारा अंधकार खत्म हो जाता है। धरती पर जीवन का संचार होता है।सूर्य की किरणों के साथ ही आकाश में भगवा रंग की लालिमा लिए आकाश लाल हो जाता है।जब सूर्योदय होता है, उस समय भी आकाश का रंग भगवा होता है,तथा सुर्यास्त के समय भी आकाश का रंग भगवा ही होता है। सीधे सीधे शब्दों में भगवा रंग जीवन का प्रतीक है।भगवा रंग के सभी साथी रंग लाल, पीला ,नारंगी हिन्दु धर्म में शुभ माना जाता है।सभी शुभ कार्यो में इन रंगो की वस्तुओ व वस्त्रों का प्रयोग होता है।हल्दी ,चंदन ,कुमकुम  भगवा रंग का ही प्रतिनिधित्व करते है।केसरिया या भगवा रंग त्याग, बलिदान, ज्ञान,वीरता  आत्मसमर्पण, सेवा का भी प्रतीक है। कहा जाता है कि, शिवाजी की सेना का ध्वज, राम, कृष्ण और अर्जुन के रथों के ध्वज का रंग केसरिया ही था। भगवा रंग शौर्य, बलिदान और वीरता का प्रतीक भी है। जेसे सुर्य भगवा रंग का प्रतिनिधित्व करता है उसी तरह अग्नि भी भगवा रंग में ही रंगा है। अग्नि में लाल, पीला और केसरिया रंग ही अधिक दिखाई देता है। सभी धर्म में अग्नि का बहुत महत्व है। यज्ञ, दीपक और दाह-संस्कार अग्नि से ही होते  हैं। अग्नि का संबंध पवित्रता  से  है ।इसलिए भी केसरिया, पीला या नारंगी रंग बेहद शुभ माना गया है। उसी तरह अग्नि संपूर्ण संसार में हवा की तरह फैला  है, लेकिन वो  दिखाई तभी देता है जब उसे   जलाया जाता है । ,  सन्यासियों का  प्रिय रंग भगवा है ।उनका  स्वभाव भी अग्नि की तरह होता है, लेकिन वो किसी को जलाने के लिए नहीं बल्कि ठंड जैसे हालात में ऊर्जा देने के लिए होता है, सूर्य की तरह  जीवन देने वाला होता  है। संन्यासी जिस पथ पर चलते है, वो पथ भी अग्निपथ के समान ही कठिन होता है। ऐसा कहा जाता है कि, अग्नि बुराई का नाश करती है। और अज्ञानता की जंजीरों से भी व्यक्ति को मुक्त करती है ।अग्नि जो हमारे जीवन जीने की वजह है।अग्नि का रंग केसरिया है जो संसार को प्रकाश से भर  देती है।जिससे जीवन की शुरुआत होती है उसमें तो भगवान दिखेंगे ही ना तभी तो कहा जा सकता है भगवे में भगवान है।

सनातन धर्म में भगवा रंग उन साधु-संन्यासियों द्वारा धारण किया जाता है, जो संसार से परे  होकर मोक्ष के मार्ग पर चलने लिए निकल पड़ते  हैं। ऐसे संन्यासी खुद और अपने परिवारों के सदस्यों का पिंडदान करके सभी तरह की मोह-माया त्यागकर आश्रम में रहते हैं। भगवा वस्त्र को संयम, संकल्प और आत्मनियंत्रण का भी प्रतीक माना गया है। भगवा रंग जो धारण करता है वो स्वयं को ही ईश्वर को पा लेता है ,उस दुनिया से परे खुद को ही पा लेता हे। तभी तो किसी ने कहा है भगवे में भगवान छुपा है।हर काम कि शुरुआत सुनहरी सुबह से होती है और  वो भगवा रंग ही है जो कहते है  कि, मानो तो सोना है न मानो तो मिट्टी।

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