कौन है यें कृष्ण दिवानी कवियत्री, जिसका एक-एक शब्द है श्रीकृष्ण
NEHA MISHRA
अपने प्रेमी की खूबसूरती की व्याख्या करनी हो या अपने मन के प्रेम को व्यक्त करना, कविताएं एक सबसे बेहतर माध्यम होती है. साहित्य इतिहास में कई ऐसे कवि है जिनकी कविताएं हृदय के सभी भावों को उजागर कर देती है. इन्हीं भावों में एक भाव है प्रेम का... और जब प्रेम की बात हो तो एक ऐसी कवियत्री है जिन्होनें अपना पूरा जीवन प्रेम में ही लीन कर दिया. जिन्होनें अपनी भक्ति और प्रेम को व्यक्त करने के लिए हमेशा कविता को ही सर्वोपरि और बेहतर माना है. हम बात कर रहे है मीराबाई की.
मीराबाई ने अपनी कविताओं से कृष्ण की भक्ति और प्रेम को भक्तिपूर्ण पहलुओं से जोड़कर सजाया. कृष्ण को लेकर मीरा के मन में एक ऐसी छवि थी कि बालकाल से लेकर मृत्यु तक मीरा ने सिर्फ कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना. कृष्ण के प्रति अपनी इसी निश्चल भक्ति और प्रेम को लेकर मीरा ने कई कविताओं की रचना की.
लोगों का मानना है कि मीराबाई ने स्वयं कभी कुछ नहीं लिखा. उन्होनें कृष्ण-प्रेम के आवेश में जो गाया वे पद बाद में संकलित हुए. जिनमें से उनकी मुख्य रचनाएं है राग गोविन्द, गीत गोविन्द, गोविन्द, टीका, राग सोरठा के पद, नरसीजी रो माहेरौ, मीरा की मल्हार, मीरा पदावली आदि. अपनी इन्हीं रचनाओं की वजह से मीराबाई भक्ति काल की कृष्ण-भक्ति धारा की श्रेष्ठ कवयित्री बनी. गीतकाव्य और विरहकाव्य की दृष्टि से मीरा का साहित्य में उच्च स्थान है.
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