ऐसे करें मूंगफली की बुवाई...

अगर आप भी मूंगफली की खेती करते हैं. लेकिन आपकी  मूंगफली की फसल में दीमक, सफेद लट, गलकट, टिक्का जैसे रोग हो जाते हैं. तो आज का ये कृषि आर्टिकल जरुर पढ़े...

मूंगफली खरीफ में उगाई जाने वाली एक प्रमुख तिलहन फसल है. मूंगफली की बुवाई जून के पहले हफ्ते से दूसरे हफ्ते तक की जाती है. मूंगफली उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए फसल को कीटों व रोगों से बचाना भी बहुत जरूरी है. मूंगफली  की फसल में दीमक, सफेद लट, गलकट, टिक्का (पत्ती धब्बा) व विषाणु गुच्छा आदि कई अन्य हानि कारक कीट व रोगों का प्रकोप होता हैं. इनमें से सफेद लट व गलकट (कॉलर रॉट) रोग के कारण फसल को सबसे ज्यादा नुकसान होता है. इसलिए मूंगफली की बुवाई से पहले बीजोपचार करना जरूरी होता है. तो चलिए विस्तार से जानते हैं कैसे करें मूंगफली की बुवाई...

इन बातों का ध्यान रखें....
राजस्थान कृषि विभाग के मुताबिक, मूंगफली की फसल को कीटों व रोगों से बचाने के लिए विभागीय सिफारिशों के अनुसार बीजोपचार करें और बीजोपचार करते समय हाथों में दस्ताने, मुंह पर मास्क और पूरे कपड़े पहने. गलकट रोग के कारण पौधे मुरझा जाते हैं. ऎसे पौधों को उखाड़ने पर उनके कॉलर भाग व जड़ों पर फफूंद की काली बढ़ोतरी दिखाई देती हैं. इस रोग से बचाव के लिए मृदा उपचार, बीजोपचार और रोग प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करना चाहिए.

कीटों....

कृषि अनुसंधान के अनुसार मूंगफली की फसल को भूमिगत कीटों के समन्वित प्रबंधन के लिए बुवाई से पूर्व भूमि में 250 किलो नीम की खली प्रति हैक्टेयर की दर से डालें और इमिडाक्लोप्रिड 600 एफएस की 6.5 मिली प्रति किलोबीज से बीजापचार करें. साथ ही ब्यूवेकिया बेसियाना का 0.5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से बुवाई के 15 दिन बाद डालें. खासकर जिन क्षेत्रों में सफेद लट का प्रकोप होता है. वहां फसल को सफेद लट से बचाने के लिए इमिडा क्लोप्रिड 600 एफएस की 6.5 मिली प्रति किलो बीज या क्लोथायोनिडिन 50 डब्ल्यूडीजी 2 ग्राम प्रति किलो बीज या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल की 3 मिली प्रति किलो बीज या क्यूनालफॉस 25 ईसी 25 मिली प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें व बीज को 2 घण्टे छाया में सुखाकर बुवाई करें.

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