हम क्यों करते हैं श्राद्ध क्या हैं इसके पीछे की मान्यता , जानें

PRATIBHA...

आज की आधुनिक दुनिया में हम तेजी से बढ़ रहे हैं लेकिन श्राद्ध का महत्व आज भी कम नहीं हुआ हैं.हिन्दू धर्म में श्राद्ध संस्कार को एक ऐसा संस्कार माना जाता हैं, जो हमे आज भी हमारे पूर्वजों से जोड़ता हैं.शास्त्रों  के अनुसार हमारे जीवन में पूर्वजों का महत्वपूर्ण योगदान और अहम भूमिका होती हैं.बता दे की, श्राद्ध संस्कार के माध्यम से हम अपने पूर्वजों और पितृगणों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं.बता दे की ,इस साल पितृपक्ष 17 सितम्बर को पड़ रहा हैं.

क्या है श्राद्ध ?

हिन्दू शास्त्र के अनुसार श्राद्ध का अर्थ हैं,श्रद्धा के साथ किया गया कर्म .श्राद्ध के महीने में हम अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करते हैं.वही श्राद्ध के विषय पर महर्षि पराशर ने कहा हैं की, "देश, काल और पात्र में तिल, दर्भ(कुश) और मंत्रों से युक्त होकर जो कर्म श्रद्धा से किया जाता हैं, उसे श्राद्ध कहते हैं."

श्राद्ध का महत्व और विधि 

श्राद्ध को पितृपक्ष के महीने में किया जाता हैं. श्राद्ध भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन महीने की अमावस्या तक चलता हैं.जिसके दौरान हम अपने पूर्वजों एवं पितरों का पिंडदान और हवन करते हैं.यह परंपरा हिन्दू धर्म में सदियों से चली आ रही हैं.जिसकी पूजा के लिए तिल,कुश ,जल ,फूल एवं अन्य सामग्री का इस्तेमाल किया जाता हैं .ऐसा माना जाता पितृपक्ष के महीने में हमारे पूर्वज हमारे घर में निवास करते हैं. जिसके चलते हम अपने घर में ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें भोज कराते हैं. साथ ही उन्हें वस्त्रों को दान कर दक्षिणा देते हैं.जिससे हमे अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं.

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