कोरे ख्याल और अधूरी ख्वाहिशें....
कोरे ख्याल और अधूरी ख्वाहिशें,
ज़िंदा रखती है मुझे ज़्यादा- ज़्यादा.
यकीन है कि पूरी नहीं होंगी,
पर सोच तो अपनी ही है.
खुशियाँ मिलती है थोड़ी - थोड़ी,
बेहतर है कि वे अधूरी ही रहे.
देखा है उनको पाकर मैंने,
जो अरमान थे जिंदगी के
अब साधारण लगते है वे.
न मिलते तब भी वही बात होती,
जो आज है हमेशा वही रात होती.
पाने की चाह देती है ज़्यादा खुशियाँ,
सब मिल जाए तब बेरंग लगती है दुनिया.
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