जब प्रेम का इज़हार करेंगे हम... "हेमंत देवलेकर"

जब प्रेम का इज़हार करेंगे हम
हमारी कोई भी महान उपलब्धि
काम नहीं आएगी

काम आएगा सिर्फ़
स्त्री के क़दमों में बैठ
काँपते हाथों से फूल देना
उसकी उत्सुकता फूल में नहीं
हमारे अहं शून्य विनय में होगी
वह देखेगी कितने शालीन होते हैं पुरुष के हाथ
और बच्चे की तरह कितने भोले
हमारी आँखों की पुतलियों में उभर आई
जीने की उत्कट इच्छा में
अपनी ज़िंदगी को तलाशते हुए
थरथराएगा उसके होंठों का लाल रंग
उसका फूल लेना
पूंछ की तरह चिपके हमारे इतिहास को काट देता है
उस क्षण से हम होना शुरू होते हैं

   ...हेमंत देवलेकर...

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